पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " मानव जीवन की सफलता इसी में है कि हम व्यक्तिगत लाभ और सुख का विचार छोड़कर अपनी शक्तियों का उपयोग परोपकार के लिए करें l " -------- वृक्षों में प्रतिस्पर्धा होने लगी कि कौन बड़ा होकर आसमान छू लेता है ? सबने अपना -अपना प्रयत्न किया और ऊंचाई छू लेने की प्रतिस्पर्धा में ध्यान ही नहीं रहा कि विस्तार और फैलाव भी रुक सकता है और वही हुआ l ताड़ का वृक्ष बाजी जीत गया l वह ऊँचा तो हो गया और अहंकार में गर्दन उठाए खड़ा भी हो गया किन्तु विस्तार न होने से वह किसी के काम का न रहा l ' पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ' आचार्य जी लिखते हैं ---- ' मनुष्य यश , धन , पद पाकर अहंकार तो बड़ा कर सकता है किन्तु ताड़ के वृक्ष की तरह उपयोगिता घटा बैठता है l '
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