कहते हैं भगवान अपने भक्तों का बहुत ध्यान करते हैं और भक्तों को बिना वजह कष्ट देने वालों को दंड देते हैं l भगवान का सच्चा भक्त चारों ओर से शत्रुओं से घिरा होने पर भी निश्चिन्त रहता है क्योंकि उसे पता है कि उसके साथ ईश्वर हैं l ------ बात उन दिनों की है जब भगवन के भक्त विजयकृष्ण गोस्वामी जी वृन्दावन में बाँकेबिहारी मंदिर में रहते थे l वह समय था जब आधे पैसे ( अधेला ) का भी कुछ मिल जाता था l गोस्वामी जी ने अपने एक शिष्य से कहा --- जाओ आधे पैसे के पेड़े ले आओ l शिष्य भी आज्ञाकारी और भगवान का परम भक्त था l दुकानदार बड़े -बड़े सौदे कर रहा था l उसने उस शिष्य का अधेला उठाकर नाली में फेंक दिया l शिष्य ने धैर्य पूर्वक उस अधेले को उठाया , धोया फिर दिया और कहा -" हमें नहीं खाना है , गुरु महाराज ने मंगाया है , दे दो भाई l " दुकानदार ने उसे फिर नाली में फेंक दिया l शिष्य ने फिर उठाया , धोया और दिया और बड़ी विनम्रता से कहा --- " गुरु जी ने प्रसाद के लिए मंगाया है , दे दो l " दुकानदार ने उसे फिर नाली में फेंक दिया , शिष्य ने फिर धोया , उठाया और दिया --- ऐसा दस बार हुआ l मालिक ने नौकरों से कहा --- " इसे पीटकर भगा दो l " वह गोस्वामी जी के पास गया और बोला --- 'नहीं दिया l बार -बार अधेला फेंकता ही रहा l " गोस्वामी जी ने कहा --- " तुमने गाली क्यों नहीं दी ? उसका स्वभाव ही गाली सुनकर काम करने का है l तुम्हे मालूम है कि तुम्हारे धैर्य के कारण वहा देवत्व इतना बढ़ा कि दुकान में आग लग गई l तुम बुरा -भला कह देते तो आग नहीं लगती l भगवान अपने भक्तों का अपमान कभी सहन नहीं करते l इसीलिए उसे दंड मिला l " उसी समय दुकानदार दौड़ा -दौड़ा पेड़े का पैकेट लिए आया और बोला --- " महाराज ! आपके चेले का अपमान हमसे हो गया l हमारी पूरी दुकान जल गई l
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