मानव शरीर होने के नाते मनुष्य से जाने -अनजाने अनेक गलतियाँ हो जाती हैं l प्रकृति के कर्मफल विधान के अनुसार उनका दंड भुगतना ही पड़ता है l महाभारत में कर्ण का चरित्र कुछ ऐसा ही है l कर्ण महादानी था , उसने देवराज इंद्र को अपने जन्म -जात कवच -कुंडल दान कर दिए थे l लेकिन उससे कुछ ऐसी गलतियाँ हो गईं जो उसकी मृत्यु का कारण बनी ----- एक दिन कर्ण अकेला बाण चलाने का अभ्यास कर रहा था , उसी समय दैवयोग से आश्रम के नजदीक चरने वाली एक गाय को उसका बाण लग गया और वह गाय मर गई l जिस ब्राह्मण की वह गाय थी उसने क्रोध में आकर कर्ण को शाप दिया कि युद्ध में तुम्हारे रथ का पहिया कीचड़ में धंस जाएगा और तुम भी उसी तरह मारे जाओगे जैसे मेरी गाय मरी है l इसी तरह कर्ण से एक और गलती हो गई थी कि उसने परशुराम से ब्रह्मास्त्र की विद्या सीखने के लिए झूठ बोला कि वह ब्राह्मण है क्योंकि परशुराम जी केवल शीलवान ब्राह्मणों को ही यह विद्या सिखाते थे l उन्होंने कर्ण को ब्रह्मास्त्र चलाने और वापस लेने का सारा रहस्य समझा दिया l एक दिन परशुराम जी कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे अल उस समय कर्ण की जांघ में एक भौंरा घुस गया , उसके काटने से कर्ण की जांघ से खून बहने लगा l कष्ट होने पर भी वह हिला नहीं कि कहीं गुरु की नींद में विध्न न हो l लेकिन जब उसके गर्म -गरम लहू के स्पर्श से परशुराम जी की नींद खुल गई और उन्होंने देखा कि इतनी पीड़ा सहते हुए भी कर्ण अविचलित भाव से बैठा है तो उन्हें समझते देर न लगी कि कर्ण ब्राह्मण नहीं है क्षत्रिय है और उन्होंने क्रोध में आकर शाप दे दिया कि जो विद्या तुमने मुझसे सीखी है वह ऐन वक्त पर तुम्हारे काम नहीं आएगी ,तुम उसे भूल जाओगे l यह दोनों ही शाप फलित हुए और कर्ण का अंत हुआ l गलतियाँ सबसे होती हैं लेकिन यदि हम ईश्वर की शरण में जाएँ और उनके आदेशानुसार कार्य करें तो रूपांतरण संभव है l कर्ण ने अधर्म और अन्याय करने वाले दुर्योधन का साथ दिया l नारद जी ने , उनके पिता सूर्यदेव ने और स्वयं भगवान कृष्ण ने उसे समझाया था कि वह दुर्योधन का साथ न दे l अत्याचारी और अन्यायी का साथ देना अपने पतन को आमंत्रित करना है लेकिन कर्ण ने किसी की बात नहीं मानी और महादानी , महावीर होते हुए भी अनीति पर चलने वाले दुर्योधन का साथ देने के कारण उसका अंत हुआ l
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