लघु कथा ---- एक गृहस्थ को सर्वोत्तम सौन्दर्य की खोज थी l सो वो एक तपस्वी के पास पहुंचे और अपनी जिज्ञासा प्रकट की l तपस्वी ने कहा --- श्रद्धा है तो पत्थर में भी भगवान हैं , मिटटी के ढेले से गणेश जी बन जाते हैं l एक भक्त से पूछा , तो उसने कहा --- प्रेम ही सुन्दर है साँवले कृष्ण गोपियों के प्राणप्रिय थे l उसका समाधान नहीं हुआ l वह आगे बढ़ा तो उसे एक सैनिक मिला , जो युद्ध भूमि से लौट रहा था l गृहस्थ ने उससे पूछा ---सच्चा सौन्दर्य कहाँ है ? " सैनिक का उत्तर था ----- ' शांति में l ' जितने मुँह उतनी बातें l निराश वह अपने घर लौटा l दो दिन से उसकी प्रतीक्षा में सभी व्याकुल थे l उसे देखकर दोनों छोटे बच्चे उछल -उछलकर अपनी ख़ुशी प्रकट कर उससे लिपट गए l माँ की आँखें इंतजार में रो -रोकर सूज गईं थीं , उन्होंने उसे ह्रदय से लगा लिया l पत्नी के मुरझाये चेहरे पर ख़ुशी लौट आई l गृहस्थ की सर्वोत्तम सौन्दर्य की खोज पूरी हुई l वह कहने लगा --- मैं कहाँ भटक रहा था l श्रद्धा , प्रेम और शांति --इन तीनों के दर्शन तो घर में ही हो रहे हैं l यही सबसे श्रेष्ठ और सर्वोत्तम सौन्दर्य है l
2 . लघु कथा --- एक देव मंदिर का पुजारी भगवान की पूजा तो पूरे विधि -विधान से करता था , किन्तु सुबह -शाम पूजा करने के बाद बचे हुए समय में वह स्वार्थ के वशीभूत होकर ऐसे कर्म करता जिससे अन्य प्राणी कष्ट पाते l और इतना कर्मकांड करने के बाद भी उसके जीवन में सुख -शांति नहीं थी l बहुत दुःखी होकर एक दिन उसने भगवान की प्रार्थना की --- 'हे प्रभु ! बताइए , इतनी पूजा -पाठ करने के बाद भी क्यों जीवन में दुःख है , अशांति है ? ' उसके ह्रदय में बैठे भगवान बोले , अंत:करण से आवाज आई ---' मूर्ख !मेरी पूजा करने के बाद भी यदि सेवा की इच्छा न हो तो ऐसी पूजा व्यर्थ है l क्या मैं इन पत्थर की मूर्तियों में ही हूँ , इन जीते -जागते प्राणियों में तुझे मेरा रूप नहीं दीखता l मेरी पूजा के बाद भी सत्कर्म करने की , सन्मार्ग पर चलने की और श्रेष्ठ विचारों को मन में रमने की प्रवृत्ति नहीं जागती तो ऐसी पूजा व्यर्थ है l ' अब पुजारी को पूजा का सही अर्थ समझ में आया और उसने पूजा के साथ लोकसेवा को अपने नित्य कर्म में सम्मिलित किया l
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