1 . संत रैदास की एक बार इच्छा हुई कि वे चित्तौड़ की रानी झाली के यहाँ जाएँ , जिसने काशीवास में आमंत्रण दिया था l संत के आने पर भंडारा हुआ l सभी विद्वानों को आमंत्रित किया गया l एक अछूत चमड़ा गांठने वाले का इतना सम्मान देखकर ब्राह्मणों ने यह निर्णय लिया कि आवश्यक खाद्य सामग्री लेकर वे स्वयं भोजन बनाएंगे l जब वे अलग से भोजन करने बैठे तो देखा कि हर ब्राह्मण पंडित की बगल में , एक रैदास बैठें हैं l यह देख सभी रैदास के चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगी l ईश्वर की नजर में कोई बड़ा , छोटा , ऊँच -नीच नहीं है l जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव तो मनुष्य ने अपने स्वार्थ और अहंकार की पूर्ति के लिए किया है l
2 . रामकृष्ण परमहंस परस्पर चर्चा में शिष्यों को बता रहे थे --- मनुष्यों में कुछ देवता होते हैं , शेष तो नर पिशाच ही होते हैं l नरेंद्र ने पूछा --- भला इन नर पिशाचों , मनुष्यों और देवताओं की पहचान क्या है ? ' परमहंस जी ने कहा ----वे मनुष्य देवता हैं जो दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए स्वयं हानि उठाने के लिए तैयार रहते हैं l मनुष्य वे हैं जो अपना भी भला करते हैं और दूसरों का भी l नर पिशाच वे हैं जो दूसरों की हानि ही सोचते और करते हैं , भले ही इस प्रयास में उन्हें स्वयं भी हानि उठानी पड़े l "
No comments:
Post a Comment