कहते हैं कोई भी संस्कृति तभी तक जीवित रहती है जब तक उस देश के लोगों का चरित्र श्रेष्ठ होता है l सारे सद्गुण जैसे --सत्य , अहिंसा , कर्तव्यपालन , ईमानदारी , संवेदना , रिश्ते में शुचिता , दया , करुणा , परस्पर प्रेम आदि सभी सद्गुण मिलकर व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करते हैं l जब व्यक्ति पतन की राह पर चल देता है तब उसका पतन इतनी तेजी से होता है जैसे कोई गेंद बड़ी तेजी से नीचे गिरती है l पुरुष और नारी से मिलकर ही यह समाज बना है जिसमे अमीर , गरीब , ऊँच -नीच , विभिन्न जाति और धर्म के लोग हैं l अब यह मनुष्य को ही चुनाव करना है कि उसे कौन सी राह पसंद है --- उत्थान की या पतन की l समाज का पतन जब होता है तो चारों दिशाओं से ही होता है --कहीं गरीबी , मज़बूरी , दंगे , युद्ध आदि के समय मौके का फायदा उठाना आदि अनेक कारण है जो पीड़ित को तरक्की की राह में आगे नहीं बढ़ने देते l दूसरी ओर समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो शिक्षित है , समर्थ है लेकिन दूषित सामाजिक वातावरण , अश्लील फिल्म , सस्ते साहित्य का असर और अपनी मानसिक कमजोरियों के कारण स्वेच्छा से ही चारित्रिक पतन के रास्ते पर चल देता है l मुखौटा लगाकर सभ्य होने का ढोंग रचता है l इन सब कारणों से व्यक्ति का आत्मबल कम हो जाता है और पीढ़ी -दर -पीढ़ी पतन होता जाता है l भगवान श्रीकृष्ण का पूरा वंश अति धन वैभव के कारण भोग -विलास में लिप्त हो गया था , वे सब आपस में ही लड़ मरे और पूरी द्वारका समुद्र में डूब गई l आज जरुरी है कि हर व्यक्ति अपने ही अंतर में , अपने ह्रदय में झांके कि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने जीवन के कौन से उदाहरण पेश कर के जा रहा है और कौन से संस्कार दे कर जा रहा है l बबूल के पेड़ में कभी आम नहीं लगता l
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