वक्त के साथ सब कुछ बदलता जाता है , यदि कोई परिवर्तन नहीं हुआ है तो वह है मनुष्य की मानसिकता l काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा --- ये सब बुराइयाँ पहले भी मनुष्य में थीं और आज भी हैं l इनका रूप अब और भी अधिक विकृत हो गया है l आज स्थिति ये है कि मनुष्य को मनुष्य से ही डर लगने लगा है l धन -दौलत को इतना अधिक महत्त्व देने के कारण अब रिश्तों का भी महत्त्व नहीं रहा l कब किस पर पशुता हावी हो जाए , कहा नहीं जा सकता l व्यक्ति के भीतर जो बुराइयाँ हैं , वे बड़ी श्रंखलाबद्ध तरीके से समाज को पतन की ओर ले जाती हैं जैसे एक व्यक्ति का स्वभाव षडयंत्र रचने का है , छल , कपट उसके स्वभाव में है तो वह ऐसा किसी एक के साथ नहीं करता , वह अनेक लोगों को अपना निशाना बनाता है l उसके लिए रिश्ते , मित्रता कोई मायने नहीं रखती l लालची व्यक्ति बेईमानी और भ्रष्टाचार को बढाता है l कामी व्यक्ति पूरे समाज को पतन के गर्त में धकेल देता है l कामना , वासना और लोभ की दूषित मानसिकता का परिणाम ही आज की फ़िल्में हैं जिनमे अश्लीलता , अपराध को ऐसे चित्रित किया जाता है कि वह लोगों के दिलो,-दिमाग में बैठ जाती है l भीतर की पशुता को उभारने में फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान है l ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी है और उसे चयन की स्वतंत्रता दी है l यह मनुष्य को ही चयन करना है कि वह पशु बने या इनसान बने l इस बात का ध्यान अवश्य रखना होगा कि यदि वह पशु बनना पसंद करता है तो वह अपने चारों ओर अपनी ही जैसी प्रवृत्ति के लोगों को आकर्षित करेगा l ऐसे में वह स्वयं , उसका परिवार , उसके अपने कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा l
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