13 August 2023

WISDOM ----

   पं .श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "भौतिक  प्रगति  के  नाम  पर  मनुष्य  ने  सुविधाओं  के  अंबार  खड़े  कर  लिए  किन्तु  फिर  भी  वह  अपने  जीवन  में  सुखी  व  संतुष्ट  दिखाई  नहीं  पड़ता  l  मनुष्य  अब  पहले  की  अपेक्षा  और  दुःखी , परेशान , निराश , अशांत  व  असंतुष्ट  नजर  आता  है  l  मनुष्य  के  शारीरिक  और  मानसिक  रोग  भी  उसी  अनुपात  में  बढ़े  हैं  l  इसका  एक  कारण  मनुष्य  के  अंतर्मन  की  भाव शून्यता  और  संवेदनहीनता  है  , जो  समय  के  साथ  निरंतर  बढ़  रही  है  l  भौतिकता  की  चकाचौंध  में  पड़कर  मनुष्य  ने  जीवन  मूल्यों  को   नकारा  है  l  स्वार्थ , अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष  आदि  में  पड़कर  व्यक्तिगत  हित  को  ही  सब  कुछ  मान  लिया  l "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  एक  सामाजिक  प्राणी  है  l  वह  उसी  अनुपात  में   सुखी  हो  सकता  है  , जिस  अनुपात  में  उसका  समाज  सुखी  है  l  वह  समाज  की  उपेक्षा  कर  अपने  लिए  सुख  के  साधन  तो  इकट्ठे  कर  सकता  है  ,  किन्तु  जीवन  में  सुखी  नहीं  बन  सकता  l  आज  समाज  में  जो  भी  आतंकवाद , दंगे , खून -खराबे  बढ़  रहे  हैं   , वे  सब  संवेदनहीनता  के  कारण  ही  उपजे  हैं   l  यह  सब  तभी  समाप्त  हो  सकता  है  जब  व्यक्ति  के  अंदर  संवेदना  जगे   और  वह  प्राणिमात्र  के  कल्याण  की  बात  सोचे  l "    एक  प्रसंग  है   जो  यह  बताता  है  कि   ह्रदय  में  संवेदना  जागने  से  हिंसा  कैसे  समाप्त  हो  जाती   है  -------   कौशाम्बी  के  राजगृह  में  कारू कसूरी  नामक  कसाई  रहता  था  l  वह  पशुओं  का  मांस  बेचकर   अपनी  जीविका  चलाता  था  l  राजगृह  में  बौद्ध  संत  आते  रहते  थे  l  अपने  पुत्र  सुलस  के  साथ  वह  कभी -कभी  उनके  दर्शन  के  लिए  चला  जाता  था  l  संत  किसी  भी  प्रकार  की  हिंसा  न  करने  की  प्रेरणा  दिया  करते  थे  l  कारू कसूरी  कहता --- मैं  अपने  पुरखों  के  धंधे  को  कैसे  छोड़  दूँ  ? यदि  मैं  हिंसा  न  करूँ  तो  खाऊंगा  क्या  ?   जब  कारू  कसाई  वृद्ध  हो  गया  , तो  उसने  तलवार  अपने  बेटे  सुलस  को  सौंप  दी  l  कसाइयों  की  पंचायत  में  सुलस  से  कहा  गया  कि   वह  कुलदेवी  की  प्रतिमा  के  समक्ष   भैंसे  की  बलि  दो  l  सुलास  का  ह्रदय   पशुओं  के  वध  के  समय  उनकी  छटपटाहट  देखकर  द्रवित  हो  उठता  था  l  अत:  उससे  तलवार  नहीं  उठी  l  मुखिया  ने  दोबारा  उससे  कहा --- " बेटे  !  यह  हमारे  कुल  की  परंपरा  है  l  देवी   को  प्रसन्न  करने  के  लिए  रक्त  निकालना  पड़ता  है  l  सुलस  ने  भैंसे  की  जगह  अपने  पैर  पर  तलवार  से  वार  कर  दिया  l  पैर  से  खून  बहने  लगा  l  ऐसा  करने  का  कारण  पूछने  पर   सुलस  बोला  --- " यदि  कुलदेवी  को  रक्त  की  ही  चाहत  है   तो  किसी  निर्दोष  का  खून  बहाने  से  बेहतर  है  कि   वे  मेरा  ही  रक्त  स्वीकार  कर  लें  l "  उसका  उत्तर  सुनकर  कारू  कसाई  का  ह्रदय  द्रवित  हो  उठा  और  उस  दिन  के  बाद  से   उसके  परिवार  में  पशु  वध  बंद  कर  दिया  गया  l  

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