पं .श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- "भौतिक प्रगति के नाम पर मनुष्य ने सुविधाओं के अंबार खड़े कर लिए किन्तु फिर भी वह अपने जीवन में सुखी व संतुष्ट दिखाई नहीं पड़ता l मनुष्य अब पहले की अपेक्षा और दुःखी , परेशान , निराश , अशांत व असंतुष्ट नजर आता है l मनुष्य के शारीरिक और मानसिक रोग भी उसी अनुपात में बढ़े हैं l इसका एक कारण मनुष्य के अंतर्मन की भाव शून्यता और संवेदनहीनता है , जो समय के साथ निरंतर बढ़ रही है l भौतिकता की चकाचौंध में पड़कर मनुष्य ने जीवन मूल्यों को नकारा है l स्वार्थ , अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष आदि में पड़कर व्यक्तिगत हित को ही सब कुछ मान लिया l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है l वह उसी अनुपात में सुखी हो सकता है , जिस अनुपात में उसका समाज सुखी है l वह समाज की उपेक्षा कर अपने लिए सुख के साधन तो इकट्ठे कर सकता है , किन्तु जीवन में सुखी नहीं बन सकता l आज समाज में जो भी आतंकवाद , दंगे , खून -खराबे बढ़ रहे हैं , वे सब संवेदनहीनता के कारण ही उपजे हैं l यह सब तभी समाप्त हो सकता है जब व्यक्ति के अंदर संवेदना जगे और वह प्राणिमात्र के कल्याण की बात सोचे l " एक प्रसंग है जो यह बताता है कि ह्रदय में संवेदना जागने से हिंसा कैसे समाप्त हो जाती है ------- कौशाम्बी के राजगृह में कारू कसूरी नामक कसाई रहता था l वह पशुओं का मांस बेचकर अपनी जीविका चलाता था l राजगृह में बौद्ध संत आते रहते थे l अपने पुत्र सुलस के साथ वह कभी -कभी उनके दर्शन के लिए चला जाता था l संत किसी भी प्रकार की हिंसा न करने की प्रेरणा दिया करते थे l कारू कसूरी कहता --- मैं अपने पुरखों के धंधे को कैसे छोड़ दूँ ? यदि मैं हिंसा न करूँ तो खाऊंगा क्या ? जब कारू कसाई वृद्ध हो गया , तो उसने तलवार अपने बेटे सुलस को सौंप दी l कसाइयों की पंचायत में सुलस से कहा गया कि वह कुलदेवी की प्रतिमा के समक्ष भैंसे की बलि दो l सुलास का ह्रदय पशुओं के वध के समय उनकी छटपटाहट देखकर द्रवित हो उठता था l अत: उससे तलवार नहीं उठी l मुखिया ने दोबारा उससे कहा --- " बेटे ! यह हमारे कुल की परंपरा है l देवी को प्रसन्न करने के लिए रक्त निकालना पड़ता है l सुलस ने भैंसे की जगह अपने पैर पर तलवार से वार कर दिया l पैर से खून बहने लगा l ऐसा करने का कारण पूछने पर सुलस बोला --- " यदि कुलदेवी को रक्त की ही चाहत है तो किसी निर्दोष का खून बहाने से बेहतर है कि वे मेरा ही रक्त स्वीकार कर लें l " उसका उत्तर सुनकर कारू कसाई का ह्रदय द्रवित हो उठा और उस दिन के बाद से उसके परिवार में पशु वध बंद कर दिया गया l
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