तनाव कहीं बाहर से नहीं आता , यह हमारी अपनी ही कमजोरियों से उपजता है l नाम , पद , यश , सम्मान पाने की इच्छा ही हमें तनाव देती है l यदि हम अपने मन में इस सत्य को बैठा लें कि ' देने वाला ईश्वर है , वह जो दे वह अच्छा है , और जो न दे उसमें कहीं न कहीं हमारी ही कोई भलाई छुपी है हमने अपना कर्तव्य किया , आगे ईश्वर की मर्जी ' तो हमें कभी कोई तनाव नहीं होगा l सुख -चैन की नींद आना ईश्वर की बहुत बड़ी देन है l ----एक बार गाँधी जी का एक परिचित धनाढ्य व्यक्ति गांधी जी से मिलने पहुंचा l उसने कहा --- " गांधी जी ! आप तो जानते हैं कि मैंने लाखों रूपये खरच कर के धर्मशाला का निर्माण कराया था l अब गुटबाजों ने मुझे ही प्रबंध समिति से हटा दिया l ऐसे लोग समिति में आ गए हैं , जिनका धन की द्रष्टि से योगदान नगण्य ही है l इस संबंध में क्या न्यायालय में मामला दर्ज कराना उचित नहीं होगा ? " गांधी जी ने कहा --- " तुमने धर्मशाला धर्मार्थ बनाई थी या उसे व्यक्तिगत संपत्ति बनाए रखने के लोभ में ? असली धर्म तो वह होता है , जो बिना लाभ की इच्छा के किया गया हो l तुम अभी तक नाम व प्रसिद्धि का लालच नहीं त्याग पाए हो , इसलिए तुम धर्मशाला में प्रबंध समिति के पद से हटाए जाने से दुःखी हो l मेरी बात मानो तो तुम धर्मशाला की प्रबंध समिति में पद और नाम की प्रसिद्धि के मोह को त्याग दो l इससे तुम्हारे मन को शांति प्राप्त होगी l " यह सुनकर उस व्यक्ति ने संकल्प किया कि अब वह पद अथवा नाम के लोभ में कभी नहीं पड़ेगा l
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