पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " समय परिवर्तनशील है किन्तु किसी भी तरह के समय को परिवर्तित करना हमारे हाथ में नहीं होगा , यह परिवर्तन स्वत: होता है , जिसे हमें स्वीकार करना होता है जिस तरह हम रात्रि को दिन में नहीं बदल सकते , लेकिन विद्युत के माध्यम से बल्ब जलाकर अंधकार को दूर कर सकते हैं , उसी तरह हम जीवन में दुःख , कष्ट , पीड़ा , अपयश , उपेक्षा , तिरस्कार आदि के आने पर इन्हें तुरंत दूर नहीं कर सकते , लेकिन इन परिस्थितियों में ईश्वर का नाम स्मरण करते हुए और शुभ कर्म , तप ( ईमानदारी से कर्तव्य पालन ) कर के हम इनकी पीड़ा को कम कर सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं l " सुख -दुःख के चक्र के बारे में अकबर -बीरबल का एक प्रसंग है ----- एक बार अपने सभाजनों के सामने सम्राट अकबर ने प्रश्न किया --- " इस संसार में ऐसा क्या है , जिसको जान लेने के बाद सुख में दुःख का अनुभव हो और दुःख में सुख का अनुभव हो ? " उनके इस प्रश्न से सभा में सन्नाटा छ गया , सभी की नजरें बीरबल की ओर थीं l बीरबल भी हाजिरजवाब थे , वे बोले ---- " यह समय भी गुजर जायेगा l " बुद्धिमान बीरबल के इस जवाब से अकबर बहुत प्रसन्न हुए l समय गुजर जाने की बात से सुखी व्यक्ति को दुःख का एहसास और दुःखी व्यक्ति को सुख का एहसास होना स्वाभाविक है l
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