पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " पथ तय करता है कि जीवन की मंजिल कहाँ है l मंजिल का अनुमान एवं आकलन राह को देखकर किया जा सकता है l अनीति एवं गलत राह से कभी भी श्रेष्ठ मंजिल की प्राप्ति संभव नहीं है l इस राह पर चलने के लिए कितने ही क्यों न प्रेरित करें , परन्तु अंत इसका अत्यंत भयावह होता है l " कौरवों की समृद्धि और ऐश्वर्य की कहानी पांडवों के अधिकार को कुचलकर लिखी गई थी और उसका अंत उससे कई गुना दर्दनाक था l पुत्र मोह से ग्रस्त धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा l प्रारम्भ में वैभव के मद में चूर कौरव अंत में एक कफ़न के लिए तरस गए l जिनकी नियत में खोट होता है उनका अंत कभी भी अच्छा नहीं होता l इसके विपरीत सन्मार्ग सदा श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर पहुंचाता है l सच्चाई की राह पर अडिग रहकर साहस , धैर्य और विवेक पूर्वक अपनी मंजिल को उपलब्ध किया है l इस उपलब्धि का आनंद ही कुछ और है , यहाँ आत्मा तृप्त होती है लेकिन अनीति और गलत राह पर चलकर जो सफलता प्राप्त की जाती है , उससे आत्मा कभी तृप्त नहीं होती , अंतर्मन खोखला ही रहता है क्योंकि मनुष्य का मन एक दर्पण है जो उसके भले -बुरे कर्मों को निरंतर उसे दिखाता है l संसार से मनुष्य छिप सकता है , भाग सकता है लेकिन अपने मन से भाग नहीं सकता l ऐश्वर्य और वैभव के भंडार के बीच भी आँखों से नींद उड़ जाती है l
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