18 November 2023

WISDOM -----

   श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं ---  परमात्मा  विभाग रहित   होने  के  साथ  स्वयं  में  तथा  औरों  में  उपस्थित  है  l  वही  सबका  भरण -पोषण  करने  वाला   और  उत्पन्न  करने  वाला  है  l  सभी  वही  है  ,  वही  बनाता  है , वही  मिटाता  है  , वही  संभालता  है  l  --इस  सत्य  को  स्वीकार  कर  लेने  से  हमारी  सभी  चिंताएं अपने  आप  ही  समाप्त  हो  जाएँगी  l   जीवन  जहाँ  भी  जिस  भी  रूप  में  उपस्थित  है  ,  उसका  भरण -पोषण  करने  वाला  ईश्वर  ही  है  l   गीता  में  कहा  गया  है  ------ सभी  जीवों  के  लिए   परमात्मा    उनके  कर्मानुसार  परिस्थितियां , घटनाक्रम  और  संसाधन   जुटाता  रहता  है  ,  फिर  भले  ही  इस  प्रक्रिया  में   माध्यम  कोई  भी  क्यों  न   उपस्थित  हो   l  जो  इस  सत्य  की  अनुभूति  कर  लेता  है   वह   अनेक  दायित्वों  का  निर्वाह  करते  हुए   अहंकार  से  मुक्त  रहता  है   l    लेकिन  जो  इस  अनुभूति  से  वंचित  रहता  है  ,  वह  स्वयं  को   अनेकों  का  भरण -पोषण  करने  वाला   समझकर   मन -ही-मन  अपनी  अहंता  को  पोषित करता  रहता  है  l                   एक  प्रसंग  है ----  छत्रपति  शिवाजी  महाराज   उन  दिनों  एक  किला  बनवा  रहे  थे  l  उस  किले  के  निर्माण  में  हजारों  मजदूर   व  कारीगर  काम  कर  रहे  थे  l  इस  द्रश्य  को  देखकर  शिवाजी  महाराज  के  मन  में  आया   कि  देखो   मेरे  कारण  कितने  लोगों  का  पालन -पोषण  हो  रहा  है  l  यदि  मैं  न  होता  तो  कितने  लोग   भूखे  मर  जाते  l  जब  शिवाजी  ऐसा  सोच  रहे  थे  उसी  समय  उनके  गुरु  समर्थ  रामदास जी   वहां  भ्रमण  करते  हुए  आ  गए  l  उन्होंने  शिवाजी  से  कहा  कि   वे  वहां  रखे  हुए  एक  बड़े  पत्थर  को  तुडवा  दें  l  गुरु  की  आज्ञा    का  पालन  करते  हुए  शिवाजी  ने  तत्काल  ही   मजदूरों  से  उस  पत्थर  को  तुडवा  दिया  l   उस  बड़े  पत्थर  के  टूटने  पर   सभी  ने  चकित  होकर  देखा  कि   उसके  भीतर  से  कई  मेढ़क   उछालते  हुए  बाहर  आ  गए  l  वे  पत्थर  के  भीतर  भरे  पानी  में  मजे  से  रह  रहे  थे  l  उन्हें  इस  द्रश्य  को  दिखाते  हुए  समर्थ  रामदास जी  ने  कहा  ---- "  शिवा  !  तू  सचमुच  बहुत  महान  है  l  तूने  अनेक  जीवों  के  भरण -पोषण  की  व्यवस्था  बना  रखी  है  l  देख  !  ये  मेढ़क  भी   तेरी  कृपा  से  इस  पत्थर  के  भीतर  सुरक्षित   एवं  सकुशल  थे  l "  अपने  गुरु  के  इस  वचन  से  शिवाजी  महाराज  को  अपनी  भूल  का  एहसास  हो  गया   l  इस  घटना  ने  उन्हें  यह  सिखा  दिया  कि  वे  केवल  माध्यम  हैं  ,  इससे  अधिक  कुछ  भी  नहीं  हैं  l  सब  जीवों  का  भरण -पोषण  करने  वाला  केवल  परमात्मा  ही  है  l  























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