श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- परमात्मा विभाग रहित होने के साथ स्वयं में तथा औरों में उपस्थित है l वही सबका भरण -पोषण करने वाला और उत्पन्न करने वाला है l सभी वही है , वही बनाता है , वही मिटाता है , वही संभालता है l --इस सत्य को स्वीकार कर लेने से हमारी सभी चिंताएं अपने आप ही समाप्त हो जाएँगी l जीवन जहाँ भी जिस भी रूप में उपस्थित है , उसका भरण -पोषण करने वाला ईश्वर ही है l गीता में कहा गया है ------ सभी जीवों के लिए परमात्मा उनके कर्मानुसार परिस्थितियां , घटनाक्रम और संसाधन जुटाता रहता है , फिर भले ही इस प्रक्रिया में माध्यम कोई भी क्यों न उपस्थित हो l जो इस सत्य की अनुभूति कर लेता है वह अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हुए अहंकार से मुक्त रहता है l लेकिन जो इस अनुभूति से वंचित रहता है , वह स्वयं को अनेकों का भरण -पोषण करने वाला समझकर मन -ही-मन अपनी अहंता को पोषित करता रहता है l एक प्रसंग है ---- छत्रपति शिवाजी महाराज उन दिनों एक किला बनवा रहे थे l उस किले के निर्माण में हजारों मजदूर व कारीगर काम कर रहे थे l इस द्रश्य को देखकर शिवाजी महाराज के मन में आया कि देखो मेरे कारण कितने लोगों का पालन -पोषण हो रहा है l यदि मैं न होता तो कितने लोग भूखे मर जाते l जब शिवाजी ऐसा सोच रहे थे उसी समय उनके गुरु समर्थ रामदास जी वहां भ्रमण करते हुए आ गए l उन्होंने शिवाजी से कहा कि वे वहां रखे हुए एक बड़े पत्थर को तुडवा दें l गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए शिवाजी ने तत्काल ही मजदूरों से उस पत्थर को तुडवा दिया l उस बड़े पत्थर के टूटने पर सभी ने चकित होकर देखा कि उसके भीतर से कई मेढ़क उछालते हुए बाहर आ गए l वे पत्थर के भीतर भरे पानी में मजे से रह रहे थे l उन्हें इस द्रश्य को दिखाते हुए समर्थ रामदास जी ने कहा ---- " शिवा ! तू सचमुच बहुत महान है l तूने अनेक जीवों के भरण -पोषण की व्यवस्था बना रखी है l देख ! ये मेढ़क भी तेरी कृपा से इस पत्थर के भीतर सुरक्षित एवं सकुशल थे l " अपने गुरु के इस वचन से शिवाजी महाराज को अपनी भूल का एहसास हो गया l इस घटना ने उन्हें यह सिखा दिया कि वे केवल माध्यम हैं , इससे अधिक कुछ भी नहीं हैं l सब जीवों का भरण -पोषण करने वाला केवल परमात्मा ही है l
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