महाभारत चल रहा था l कर्ण और अर्जुन के बीच भयंकर बाण वर्षा चल रही थी l अवसर पाकर एक भयंकर सर्प कर्ण के तूणीर में घुस गया l कर्ण ने बाण निकाला तो स्पर्श कुछ अनोखा लगा l उसने सर्प को देखा और आश्चर्य से पूछा ----- " तुम यहाँ किस प्रकार आ गए l सर्प ने कहा --- " अर्जुन ने एक बार खांडव वन में आग लगा दी l उसमे मेरी माता जल गई l तभी से मेरे मन में प्रतिशोध की आग जल रही है l मैं इस ताक में था कि कोई अवसर मिले और मैं अर्जुन के प्राण हरण करूँ l आप मुझे तीर के स्थान पर चला दें l मैं जाते ही अर्जुन को डस लूँगा l आपका शत्रु भी मर जायेगा और मेरा प्रतिशोध भी शांत हो जायेगा l " कर्ण ने कहा ---- " अनैतिक उपाय से सफलता पाने का मेरा तनिक भी विचार नहीं है l सर्प देव आप वापस लौट जाएँ l " जो वीर होते हैं , जिनमें 'शौर्य ' होता है वे कभी अनैतिक तरीके से सफलता नहीं चाहते l लेकिन जैसे जैसे कलियुग अपने चरम पर पहुँच रहा है , संसार में कायरता बढ़ती जा रही है l साम -दाम , दंड -भेद हर तरीके से लोग दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ना चाहते हैं और इस दौड़ में सबसे ज्यादा खतरा बाहरी जीव -जंतुओं से नहीं ' आस्तीन के साँपों ' से है l
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