धरती की गोद में दो बीज पड़े थे l एक में से अंकुर फूटे और वह ऊपर की ओर बढ़ने लगा तो दूसरा बीज बोला --- " भैया ! ऊपर मत जाना , वहां भय है कि दूसरे तुम्हे पैरों तले रौंद डालेंगे l " यह सुनकर भी पहला बीज मुस्कराता हुआ ऊपर की ओर बढ़ गया l सूर्य का प्रकाश , हवा व पानी पाकर अंकुर पौधे में बदल गया l धीरे -धीरे वह पूर्ण विकसित वृक्ष बना और संसार से विदा होते समय अपने जैसे असंख्य बीज छोड़कर आत्मसंतोष अनुभव करता रहा l , दूसरा बीज जहाँ का तहां रह गया , सड़ गया l जीवन में प्रगति वही कर पाते हैं , जो चुनौतियों से लड़ने का जज्बा रखते हैं , दूसरे तो पलायनवादी ही कहलाते हैं l
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