जब -जब होता नाश धर्म का और पाप बढ़ जाता है , तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शांति पाता है l कलियुग की परिस्थितियां कुछ ऐसी हैं कि सम्पूर्ण संसार में अशांति है l बेवजह के युद्ध , तनाव , दंगे , मनमुटाव ---- असुरता हावी है l इस संसार में आदिकाल से ही देवासुर संग्राम , अँधेरे और उजाले का संघर्ष रहा है l प्राचीन काल में और इस कलियुग में अंतर केवल इतना है कि पहले असुर सामने थे , असुर के रूप में उनकी पहचान थी , रावण गर्व से स्वयं को राक्षसराज रावण कहता था l अति आवश्यक होने पर ही वे अपना वेश बदलते थे जैसे रावण , सीता हरण के लिए कटोरा लेकर भिखारी बन गया l रावण के कहने पर मारीच ने भी अपना रूप बदला l रावण की बहन भी वेश बदलकर राम , लक्ष्मण को लुभाने गई तो अपनी नाक कटा आई l द्वापरयुग में भी स्पष्ट था कि दुर्योधन आदि कौरव षड्यंत्रकारी हैं , अधर्म के मार्ग पर हैं l ऐसे में ईश्वर के लिए भी सरल था कि राक्षसों को , अत्याचार , अन्याय करने वाले षड्यंत्रकारियों का अंत करना है l लेकिन कलियुग की समस्या बड़ी जटिल है , अधिकांश लोग मुखौटा लगायें हैं , जो जैसा दीखता है वो वास्तव में वैसा है नहीं l सामान्य व्यक्ति के लिए तो लोगों की असलियत को जानना समझना बहुत कठिन है , केवल ईश्वर को ही पता है कि कौन देवता है और कौन असुर है l देवता तो बहुत ही कम हैं , सन्मार्ग पर चलने वाले उपेक्षित हैं l सम्पूर्ण संसार में असुरता ही हावी है , इसलिए ईश्वर के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि यदि सब असुरों का अंत कर दें तो देवता तो इतने कम हैं , फिर ये संसार कौन चलाएगा ? इसलिए ईश्वरीय न्याय की गति बहुत धीमी होती है l भगवान को यह संसार सबसे ज्यादा प्रिय है , वे नहीं चाहते कि असुरता के बोझ से इस धरती का अंत हो जाये , इसलिए भगवान सबको सुधरने का मौका देते हैं , कई मौके देते हैं कि अब तो सुधर जाओ , सन्मार्ग पर चलो l इसमें कई वर्ष निकल जाते हैं , इतने पर भी जब वे असुर नहीं सुधरते तब भगवान उनका अंत करते हैं l
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