तुलसीदास जी ने कहा है --- कर्म प्रधान विश्व करि राखा l जो जस करहि सो तस फल चाखा l पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' बोओ और काटो ' का सिद्धांत सारी प्रकृति में देखने को मिलता है l बबूल का बीज बोकर कोई आम नहीं खा सकता l ' यह कर्म फल कभी तो तुरंत इसी जन्म में मिल जाता है , परन्तु कभी ऐसा होता है कि दुष्ट कर्म करने वाले तो सुखी और संपन्न दिखाई देते हैं तथा त्यागी -तपस्वी दुःखी होते हैं तो विश्वास डगमगा जाता है l मनुष्य सोचता है कि जब दुष्ट व्यक्ति आराम का जीवन जीते हैं और सज्जन कष्ट पा रहे हैं तो फिर त्याग -तपस्या का जीवन क्यों जिएं ? यह भावना मनुष्य को उद्दंड और नास्तिक बना देती है l आचार्य श्री लिखते हैं --- यदि झूठ बोलते ही मनुष्य की जीभ कटकर गिर जाती , चोरी करते ही हाथ कट जाते तो प्रत्येक व्यक्ति दुष्कर्म करने से डरता l परन्तु जब कर्मों का फल दूसरे किसी जन्म में मिलता है तो मनुष्य आस्थाहीन हो जाता है l लेकिन यह निश्चित है ---- ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं l ----- एक स्त्री नि:संतान थी l किसी तांत्रिक ने उसे बताया कि यदि वह किसी बच्चे की बली दे देगी तो उसके संतान होगी l उसने दूर गाँव के एक गरीब बच्चे को मरवाकर गड़वा दिया और ईश्वर की लीला ऐसी कि उसके दो सुन्दर लड़के हुए , बहुत होनहार थे l उस स्त्री के क्रम का जिन्हें पता था , वे सब यही कहते कि देखो इस औरत ने कितना नीच कर्म किया और भगवान ने इसको सजा देने के बदले दो -दो बेटे दिए l ईश्वर के यहाँ अंधेर है ! बच्चे बड़े हुए , बहुत सुन्दर , पढ़ने में होशियार , लेकिन एक दिन दोनों नदी में नहा रहे थे , अचानक एक का पैर फिसला , दूसरा उसे बचाने के लिए आगे बढ़ा तो वह भी संभल नहीं सका और दोनों नदी में डूब गए l अब वह स्त्री रो -रोकर सबसे यही कह रही थी कि भगवान ने मेरे पाप की सजा मुझे दे दी l ईश्वर के यहाँ देर है , अंधेर नहीं l
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