पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " नियमितता ही जीवन है l सूर्य एक नियमितता लिए हुए उदय एवं अस्त होता है l पृथ्वी , चंद्रमा गृह , तारे सभी निश्चित गति से सुसंचालित हैं l कीड़े -मकोड़ों और पक्षियों में यह विशेषता पाई जाती है कि वे अपने भीतर की किसी अज्ञात घड़ी के मार्गदर्शन से अपनी गतिविधियाँ व्यवस्थित रखते हैं l मुर्गा समय पर बांग देता है , चमगादड़ रात को ही उड़ता है l " प्रकृति के नियम इतने अटल हैं कि वे किसी देवता , और ईश्वर के लिए भी नहीं बदलते l दीपावली के संबंध में कथा है ---- जब 14 वर्ष की अवधि समाप्त कर भगवान राम वन से अयोध्या लौटे थे , तब उस दिन अमावस्या की रात्रि थी l भरत ने सूर्य से प्रार्थना की कि मेरे भाई 14 वर्ष बाद घर आ रहे हैं , तुम रात्रि में प्रकाश कर दो l पर सूर्य नियम से बंधे थे , उन्होंने मना कर दिया कि मैं नियम के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता l फिर उन्होंने चंद्रमा से प्रार्थना की कि तुम ही प्रकाशित हो जाओ , पर चंद्रमा भी विवश थे l प्रकृति के नियम को बदलने का साहस उनमें भी नहीं था , इस विवशता पर उनकी आँखों में आँसू आ गए l आँसू गिरने से मिटटी गीली हो गई l गीली मिटटी ने कहा --- " भरत , रो मत , गीली मिटटी के दीपक बना और घी के दीप जलाकर भाई राम का स्वागत कर l ' और कहते हैं उन दीपों के प्रकाश को देखकर आकाश के सूर्य और चन्द्र भी लज्जित हो गए l मनुष्य भी यदि प्रकृति के नियमों के अनुसार चले तो अपने जीवन को प्रकाशित करने की अपार संभावनाएं हैं l
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