संत रैदास के प्रवचन सुनने हेतु सैकड़ों लोग एकत्र हुआ करते थे l एक बार एक सेठ जी भी उनका प्रवचन सुनने आए l कथा के उपरांत प्रसाद का वितरण आरम्भ प्रारम्भ हुआ l एक हरिजन का प्रसाद खाने में उन्हें संकोच हुआ तो उन्होंने प्रसाद हाथ में लेकर एक ओर फेंक दिया l वह प्रसाद एक कोढ़ी के शरीर से टकराकर नीचे गिर गया , कोढ़ी ने वह प्रसाद उठाकर खा लिया जिससे वह तो ठीक हो गया परन्तु सेठजी कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए l अपने दुःख से मुक्ति पाने हेतु सेठ जी , संत रैदास की शरण में गए l मन की बात जानने वाले रैदास जी ने सेठ जी से कहा ---- " वह तो मुल्तान गया अर्थात अब वह प्रसाद दोबारा मिलना कठिन है l " परन्तु दयावश उन्होंने सेठ जी को ठीक कर दिया l सेठ जी को अपनी भूल का भान हुआ , उन्हें यह सत्य समझ में आया कि मनुष्य का जन्म किस जाति , किस धर्म में हुआ है , इस पर उसका कोई वश नहीं है l मनुष्य जन्म से नहीं , कर्म से महान होता है l ये भेदभाव तो मनुष्य ने अपने स्वार्थ और अहंकार के पोषण के लिए ही बनाए हैं l
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