आज संसार में जितनी भी समस्याएं हैं , प्रमुख रूप से डिप्रेशन है , लड़ाई झगडे हैं , उनके पीछे किसी न किसी का अहंकार अवश्य है l कृषि , उद्योग , शिक्षा , चिकित्सा , राजनीति , छोटी -बड़ी संस्थाएं , यहाँ तक कि परिवारों में भी अधिकांश समस्याएं किसी न किसी व्यक्ति के अहंकार के कारण हैं l कोई उच्च पद पर बैठा व्यक्ति , धन -वैभव संपन्न व्यक्ति अहंकार करे तो फिर भी बात समझ में आती है लेकिन किसी छोटी संस्था में , , छोटे से परिवार में एक व्यक्ति अहंकारी हो और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझ कर सब को अपने कंट्रोल में रखना चाहे , अपनी हुकूमत चलाने के लिए सबका जीना मुश्किल कर दे तो यह उस अहंकारी की मानसिक विकृति है l विकृति इस लिए भी क्योंकि पीड़ित व्यक्ति उनसे अपना पीछा छुड़ा ले , लेकिन अहंकारी अपनी हुकूमत के लिए उसका पीछा नहीं छोड़ता l परिवार में , संस्थाओं में हिंसा , उत्पीड़न इसी विकृति का दुष्परिणाम है l अहंकार की यह बीमारी कोई नई नहीं है , इतिहास उनके कारनामों से भरा पड़ा है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " अहंकार से प्रेरित बुद्धि हमेशा ही कुटिल और कलुषित होती है l वह कभी सर्वहित की नहीं सोचता , उसकी सोच में सदा ही क्षुद्रता और स्वार्थ हावी रहते हैं l असुरों की चेतना सदा ही अपने अहंकार के कारण स्रष्टि में बाधा उत्पन्न करती है इसलिए श्रीभगवान ही विविध रूप धारण कर के उसका विनाश करते हैं l " श्रीदुर्गासप्तशती में कथा है ----- जब दो भयंकर असुर मधु और कैटभ ने संसार में आतंक मचाया , देवताओं को पीड़ित किया फिर अपने बल के अहंकार में ब्रह्माजी का वध करने को तैयार हो गए तब भगवान श्रीहरि ने उन दोनों के साथ पांच हजार वर्षों तक युद्ध किया l मधु -कैटभ अपने अहंकार में इतने उन्मत हो गए कि वे वरदाता भगवान विष्णु से कहने लगे ---- " हम तुम्हारी वीरता से बहुत संतुष्ट हैं l तुम हम लोगों से कोई वर मांगो l " यह अहंकार की चरम सीमा थी कि वरदाता को वरदान देने का साहस करने लगे l अहंकार हमेशा अपना ही विनाश करता है l श्रीभगवान बोले ---- " प्रसन्न हो तो इतना ही वर दो कि अब मेरे ही हाथ से मारे जाओ l " भगवान ने उन दोनों के मस्तक अपनी जांघ पर रखकर चक्र से काट डाले l अहंकार की कोई सीमा रेखा नहीं है इसलिए प्रकृति स्वयं उसके विनाश सरंजाम जुटा देती है l आचार्य श्री लिखते हैं ---- " यदि किसी को अपने अहंकार का , इसके उपद्रव का ज्ञान हो जाये , तब वह स्वयं ही इस अज्ञान के अंधकार में नहीं रहना चाहता और ईश्वर से इस अहंकार के विनाश की कामना करने लगता है l "
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