पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ( प्रवचन का अंश--27. 05.77 )---- " हम और आप ऐसे वक्त में रह रहे हैं , जिसमें इनसान का स्वार्थ बेहिसाब रूप से बढ़ता जा रहा है l आदमी समझदार तो बहुत होता जा रहा है , लेकिन आदमी पत्थर का , निष्ठुर बनता जा रहा है ----- इसके अन्दर से दया , करुणा , ममता , स्नेह , दुलार और आदर्शवाद के सारे सिद्धांत खतम होते चले जा रहे हैं l पैसा , काम - वासना , तृष्णा के अलावा और कोई दूसरा लक्ष्य नहीं है l जब आदमी के ह्रदय से मुहब्बत , स्नेह , सहकारिता, ईमानदारी , भलमनसाहत चली जाएगी तब आदमी के बराबर खौफनाक जानवर दुनिया के परदे पर कोई नहीं होगा l शेर मारकाट में तो बहुत ताकतवर होता है , पर बेअक्ल होता है l हाथी भी ताकतवर बहुत होता है , पर वह भी बेअक्ल होता है लेकिन आदमी इतना समझदार है कि इसको किसी के पेट में मुंह खंगाल कर के खून पीने की जरुरत नहीं है l किसी के पेट में बिना दांत गड़ाए ही वह दूसरों का खून पी सकता है और आदमी को मुरदा बना कर के छोड़ सकता है l यह कला मनुष्य को आती है l आदमी बड़ा खौफनाक और खतरनाक है l पहले आदमी को देखकर हिम्मत बंधती थी कि वह हमारी सहायता करेगा , हम एक से दो हो गए l लेकिन अब हमको भय मालूम पड़ता है कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ -साथ जो व्यक्ति चलता है , वही हमारे लिए पिशाच न सिद्ध हो l यह तरक्की मुझे बड़ी खौफनाक मालूम पड़ती है l यदि तरक्की इसी हिसाब से होती चली गई तो आदमी को देखकर आदमी डरेगा और कहेगा कि देखो , आदमी जा रहा है , होशियार रहना l " ------- विकास की अंधी दौड़ में भावनाएं समाप्त हो गई है , संवेदनहीनता के कारण ही युद्ध , अपराध , अन्याय, अत्याचार होता है l यह एक पक्षीय विकास सम्पूर्ण मानवजाति के लिए खतरा है l
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