पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' इस संसार में दैवी और आसुरी दोनों ही शक्तियां काम करती हैं l यह देवासुर संग्राम सदा जारी रहता है l इसमें देव पक्ष का समर्थन करने के लिए , उसकी सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि असुर पक्ष का विरोध किया जाये , उससे सावधान रहा जाये और उसे नष्ट किया जाये l जैसे खेत को पशु -पक्षियों से सुरक्षित न रखा जाये तो वे उसे खा जाएंगे l इसी तरह यदि आसुरी शक्तियों से न बचा जाए, उनका प्रतिरोध न किया जाए तो वे धीरे -धीरे दैवी शक्तियों पर अपना कब्ज़ा करती जाती हैं l बुराई छोटी है , यदि यह समझकर उसकी उपेक्षा की जाए तो वह क्षय रोग की तरह चुपके -चुपके अपना कब्ज़ा जमाती है और एक दिन उसका पूरा आधिपत्य हो जाता है l ' महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन अपने सामने गुरु द्रोणाचार्य , भीष्म पितामह और अपने सभी बंधुओं को देखता है तो युद्ध करने से इनकार कर देता है , अपने धनुष -बाण नीचे रख देता है l तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया और समझाया कि ये कौरव अन्याय और अधर्म के मार्ग पर हैं l यदि अत्याचार और अन्याय को हम नहीं मिटाएंगे तो वे हमें मिटा डालेंगे l इसलिए अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध करो , कायर नहीं बनो l यह महाभारत तो धरती पर लड़ा गया , एक महाभारत मनुष्य का अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से है , अपने भीतर की बुराइयों का ही अंत करना है क्योंकि मनुष्य की तृष्णा , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , महत्वाकांक्षा ----ये सब दुष्प्रवृत्तियाँ ही धरती पर महाभारत को जन्म देती हैं l
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