पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की संपदा और इंद्र की समर्थता भी कम पड़ती है l " घटना रूस के साइबेरिया क्षेत्र के एक गाँव की है l उस गाँव के लिए यह विख्यात था कि गाँव वाले अपनी जमीन बिना किसी मूल्य के किसी भी आगंतुक को दे दिया करते थे , यदि वह उनके द्वारा रखी गई शर्त को पूर्ण कर दे l शर्त भी बहुत सरल थी , केवल दौड़ना भर था l यह सुनकर एक व्यक्ति उस गाँव के प्रधान से मिला l गाँव का प्रधान उस व्यक्ति को देखकर जोर से हँसा और बोला --- " लो एक और आ गया l " वह व्यक्ति आश्चर्य चकित हुआ और बोला --- " आप हँसे क्यों ? " गाँव का प्रधान बोला ---- " हँसने की बात यह है कि यहाँ तो लगभग हर दिन कोई न कोई शर्त सुनकर आता है , पर आज तक उसको जीतकर कोई वापस नहीं लौटा l किसान ने पूछा --- " शर्त क्या है ? " ग्राम प्रधान बोला --- " सारी जमीन तुम्हे नि:शुल्क उपलब्ध है l इसके लिए मात्र एक शर्त है कि तुम यहाँ खींची रेखा से सूर्योदय से दौड़ना शुरू करोगे और सूर्यास्त होने तक जितनी जमीन नापकर तुम इसी रेखा तक आ जाओगे , उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी , पर यदि नहीं आ पाए तो तुम्हे आजन्म गुलाम बनकर यहीं रहना पड़ेगा l " उस व्यक्ति को लगा कि यह तो बड़ी आसान शर्त है और उसने तुरंत हाँ भर दी l सूर्योदय पर उसने भागना शुरू किया और दोपहर तक सात -आठ मील जमीन नाप ली तो उसका लालच बढ़ने लगा l उसने साथ लाया भोजन और पानी वहीँ छोड़ा और सोचा कि एक दिन नहीं भी खाया तो क्या , आज ज्यादा से ज्यादा जमीन नाप लेते हैं l भागते -भागते दोपहर के तीन बज गए l ज्यादा जमीन का लालच तो उसे दूसरी ओर खींच रहा था , पर मन मार कर वह वापस लौटा तो खींची रेखा से आधा मील दूर जमीन पर गिर पड़ा l ग्राम प्रधान वहीँ पास खड़ा था और उससे बोला ---- " शर्त आसान है , परन्तु मनुष्य के लालच का अंत नहीं है l इसीलिए आज तक इस शर्त को पूरा करने वाला कोई मिला नहीं और जितने गाँव वाले दिखाई पड़ते हैं , ये सब शर्त हारे हुए गुलाम ही हैं l "
No comments:
Post a Comment