पेट पालने के लिए धन कमाना बहुत जरुरी है और धन कमाने के कई तरीके हैं l जब राजतन्त्र था , बड़ी -बड़ी कम्पनियां नहीं थीं , तब राजा को खुश करने एवं प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से विशेषज्ञ चाटुकारों की व्यवस्था की जाती थी l उनका काम ही था कि वे राजाओं के विभिन्न कार्यों , गुणों और रूप आदि की प्रशंसा करें l ये चाटुकार अपनी कविता , गीतों आदि विभिन्न तरीकों से राजा की प्रशंसा करते थे और राजा प्रसन्न होकर दरबार में सबके सामने उन्हें तोहफे देते , कभी अपने गले से उतार कर हीरे -मोतियों के हार आदि बहुमूल्य तोहफे देते थे l यही इनकी जीविका का साधन था , वे इस कार्य के विशेषज्ञ होते थे l अब वक्त बदल गया , अब अलग से ' चाटुकार ' रोजगार का साधन नहीं है l अब लोग विभिन्न कार्यों में , रोजगार में संलग्न रहते हुए , अपने चाटुकारिता के गुण के कारण अपने वेतन के साथ अतिरिक्त फायदा भी कमा लेते हैं l अपनी प्रशंसा सबको अच्छी लगती है , दिल को छूती है , प्रशंसा सुनकर मन इतना प्रसन्न हो जाता है कि कई दिन तक उसका नशा दिल पर छाया रहता है l इसलिए चाहे कोई छोटी सी संस्था हो , बड़ा संगठन हो , छोटा -बड़ा नेता हो ----, सबको प्रशंसा अच्छी लगती है इसलिए कुशल व्यक्ति चाटुकारिता के गुण से एक सम्पन्नता का जीवन जी लेते हैं l चाटुकारिता करने वाला तो हर तरह से फायदे में रहता है , यह उसका स्वभाव होता है जैसे अधिकारी बदल गया , तो जो नया अधिकारी आता है , वे सुबह से रात तक उसकी खुशामद में लग जाते हैं l हमारे ऋषियों का कहना है ---यह संसार गणित से चलता है , संसार में स्वार्थ और लालच बहुत है इसलिए प्रशंसा से विचलित नहीं होना चाहिए l यह प्रशंसा खतरनाक तब हो जाती है जब प्रशंसा या चाटुकारिता करने वाला इतना सक्षम है , होशियार है कि वह उस चाटुकारिता प्रिय के व्यक्तित्व पर हावी हो जाता है , उसके जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित करता है , अपने स्वार्थ के अनुरूप निर्णय लेने को विवश कर देता है l यह स्थिति केवल संस्थाओं में , राजनीति में , संगठनों में ही नहीं होती , विभिन्न घर -परिवारों में भी इसी ' गुण विशेष ' के कारण कलह , मुकदमे होते है , परिवार में भेदभाव होता है l इन सबके मूल में यही कारण है कि सद्बुद्धि की , विवेक की कमी है l यह सद्बुद्धि कैसे आए ? पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है --- ' गायत्री मन्त्र में वह शक्ति है जिससे व्यक्ति को सद्बुद्धि का वरदान मिलता है , वह क्या सही है और क्या गलत है , यह समझकर विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय लेता है l श्रद्धा और विश्वास जरुरी है l
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