संत हाशिम की गणना प्रसिद्ध सूफी फकीरों में होती है l वे एक बार बगदाद पहुंचे l जब बगदाद के खलीफा हारून को उनके वहां पहुँचने का समाचार मिला तो वे संत हाशिम से मिलने पहुंचे l खलीफा हारून की ख्याति एक पथ भ्रष्ट और विलासी राजा के रूप में थी l संत हाशिम के पास पहुंचकर खलीफा हारून उन्हें अभिवादन करने के लिए नीचे झुकने लगे तो संत हाशिम ने उन्हें रोकते हुए कहा ---- " आप नीचे न झुकें हुजुर ! आप तो बड़े त्यागी और विरक्त इनसान हैं l झुकना तो मुझे आपके सामने चाहिए l " खलीफा हारून को लगा कि संत हाशिम ने उन पर व्यंग्य मारा है l वो थोडा क्रोधित होते हुए बोले --- " ये आप कैसी बाते करते हैं ? संत होकर दूसरों की खिल्ली उड़ाना आपको शोभा नहीं देता l " संत हाशिम बोले ---- " नहीं ! मैं आपका मजाक नहीं उड़ा रहा l सच तो ये है कि मैंने तो केवल दुनिया के ऐशोआराम का त्याग किया है , आप तो अपनी आत्मा और उन परवरदिगार को भुलाकर बैठे हैं , जो सारी दुनिया के रखवाले हैं l तो उसको त्यागने वाला तो दुनिया की सबसे कीमती चीज को त्यागने वाला है l इसलिए आपका त्याग , मेरे त्याग से कई गुना बड़ा हुआ l बताइए अब कौन किसके आगे झुके ? " संत हाशिम की बातें खलीफा हारून के दिल पर चोट कर गईं और वे सब कुछ छोड़कर संत हाशिम के साथ निकल पड़े l
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