पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ' प्रज्ञा पुराण ' में लघु कथाओं और प्रसंग के माध्यम से हमें जीवन जीने की कला सिखाई है l --- संसार में विभिन्न धर्मों के लोग अपने -अपने धर्म के कर्मकांड , उपासना करते हैं l हर धर्म के अलग तरीके हैं l मनुष्य पूजा -उपासना करने में निश्चित रूप से अपना कुछ समय भी देता है l यह सब भी जरुरी है अपने धर्म और संस्कृति को जीवित रखने के लिए l लेकिन मन चंचल है , केन्द्रित नहीं होता , हर समय कुलांचे भरता रहता है l यही कारण है कि संसार में विभिन्न तरीकों से उस परम सत्ता को पूजने और धर्म के नाम पर विभिन्न कार्य करने के बावजूद भी संसार में शांति नहीं है l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' केवल माला घुमाते रहना जप नहीं है l भगवान की सच्ची पूजा कर्तव्यपालन और दुःखियों की सेवा है l यदि कोई व्यक्ति बड़े -बड़े व्रत -उपवास रखता है , पूजा -पाठ करता है , किसी इच्छापूर्ति के लिए यज्ञ -अनुष्ठान करता है , लेकिन गरीबों का शोषण करता है , किसी का हक छीनता है , लोगों का दिल दुखाता है तो उससे भगवान कभी प्रसन्न नहीं हो सकते l -------- एक बार रामलीला खेलने के लिए दो गरीब बच्चों को चुना गया l उन्हें राम -लक्ष्मण बना दिया गया l सबने उनकी आरती उतारी l खूब पैसे इकट्ठे हुए l तीन दिन तक इसी प्रकार कार्यक्रम चलता रहा l उन बच्चों ने सोचा था कि उन्हें भी कुछ रूपये -पैसे मिलेंगे l लेकिन अंतिम दिन प्रसाद बंटा , सबने खूब मौज -मस्ती की , ठर्रा पिया किन्तु उन दोनों बच्चों को जिन्हें राम लक्ष्मण बनाया गया था , किसी ने खाने के लिए भी नहीं पूछा और उन बच्चों से कहा --- " अभी पैसे नहीं मिले हैं , बाद में तुम्हे कपड़े देंगे , अभी जाओ l " वे दोनों बेचारे रोते हुए चले गए l यह सोचने का प्रश्न है क्या ऐसे धार्मिक कार्य से ईश्वर प्रसन्न होंगे ? ' एक प्रसंग है ---- एक बार गुरु नानकदेव जी किसी खां साहब से मिलने गए l वे उस समय नमाज पढ़ रहे थे l गुरूजी को हँसी आ गई l नमाज से उठकर खां साहब ने नानकजी से पूछा ---- " आप क्यों हँस रहे थे , मेरी नमाज देखकर l " नानकदेव जी ने कहा ---- " मैं हँस रहा था इसलिए कि तुम नमाज नहीं पढ़ रहे थे , अरब में घोड़े खरीद रहे थे l " यह सुनकर खां साहब शर्मिंदा हुए क्योंकि वे नमाज पढ़ते समय अरब में घोड़े खरीदने की बात सोच रहे थे l इसलिए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने पूजा -उपासना के साथ नि:स्वार्थ सेवा के कार्यों को करना अनिवार्य बताया है तभी वह पूजा सार्थक है l उनका कहना है --- 'यदि भक्ति में कटौती कर के सेवा में समय लगाना पड़े तो उसे घाटा नहीं समझना चाहिए l '
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