एक युवक ने भगवान बुद्ध से दीक्षा ली l इससे पूर्व वह सुख -भोग में पला था और संगीत की सभी विधाओं में पारंगत था l अचानक ही उसे वैराग्य हो गया और वैराग्य भी ऐसा कि उसने अति कर दी l सब भिक्षु मार्ग पर चलते तो वह काँटों पर जानबूझ कर चलता l अन्य भिक्षु समय पर सोते लेकिन वह रात भर जागता l सब भोजन करते , वह उपवास करता l इस तितिक्षा के कारण छह माह में उसका शरीर सूख कर काँटा हो गया , पैरों में छाले पड़ गए l तप -तितिक्षा की उसने अति कर दी l एक दिन भगवान बुद्ध ने उसे बुलाकर पास बिठाया और पूछा ---- " तुम तो यहाँ आने से पहले संगीत के अच्छे ज्ञाता रहे हो , यह बताओ कि वीणा से मधुर ध्वनि निकले , इसके लिए क्या किया जाता है ? " युवक ने उत्तर दिया ---- " तारों को संतुलित रखा जाता है l " बुद्ध बोले ---- " भंते ! यही साधना में भी किया जाता है l शरीर भी वीणा के समान है l वीणा के तारों को इतना मत कसो कि वे टूट जाएँ , और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि वे बजना ही छोड़ दें l यदि इसे समत्व की , संतुलन की स्थिति में रखोगे तो साधना सिद्धि में परिणत होगी l " युवक की समझ में मर्म आ गया , जीवन का कोई भी क्षेत्र हो उसमें संतुलन जरुरी है l
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