महात्मा बुद्ध अक्सर अपने अनुयायियों और आम लोगों के बीच उपदेश दिया करते थे l एक बार एक युवक ने उनसे कहा ---- " प्रभु ! आपके उपदेश सुनने के बाद मैं उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में पालन करने का प्रयास तो करता हूँ , पर मैं वैसा सदाचरण नहीं कर पाता , जैसा आपके सत्संग में सुनकर जाता हूँ l फिर इसमें मेरा क्या दोष है ? बताइए मैं क्या करूँ ? " भगवान बुद्ध मुस्कराते हुए बोले ---- " वत्स ! यदि प्रयास सच्चा हो और सही दिशा में हो तो उसमें सफलता अवश्य मिलती है l आधे -अधूरे मन से किए गए प्रयास निष्फल ही होते हैं l " भगवान बुद्ध ने उसे एक बाँस की टोकरी दी और उसमें पास की नदी से जल भरकर लाने को कहा l युवक नदी में जाकर टोकरी में जल भरता , पर उसे बाहर निकालते ही पूरा जल टोकरी से बाहर निकल जाता l भगवान बुद्ध ने कहा --- " भले ही उसमें जल नहीं रहा हो , पर तुम अपना प्रयास जारी रखो l " युवक ने वैसा ही किया l युवक प्रतिदिन टोकरी में जल भरने का प्रयास करता , पर हर बार असफल रहता l भगवान बुद्ध की प्रेरणा से युवक ने हार नहीं मानी निरंतर प्रयास करता रहा और आखिर वह दिन आ गया जब टोकरी के छिद्र फूलकर पूरी तरह बंद हो गए और उस टोकरी में में जल भी भर आया l युवक ने जल भरी टोकरी भगवान बुद्ध को दिखाते हुए कहा --- ' प्रभु ! आपने सच ही कहा था , आज इस टोकरी में पूरा जल भर आया l " भगवान बुद्ध बोले ---- "वत्स ! जो इसी प्रकार सत्संग करते हैं और सत्संग में मिले ज्ञान के सूत्र को अपने जीवन में उतारने का सच्चा प्रयास करते हैं , वे एक दिन उसमें अवश्य ही सफल होते हैं l लगातार सत्संग में शामिल होने से व्यक्ति का मन निर्मल होने लगता है और उन उपदेशों को अपने जीवन में उतारने से इस टोकरी के छिद्रों की तरह उसके अवगुण के छिद्र भरने लगते हैं और उसमें गुणों का जल भरने लगता है जिससे उसका जीवन सुख और शांति से भर जाता है l "
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