राजा बालीक ने अपने प्रधान सचिव विश्वदर्शन को पदच्युत कर राज्य से निकाल दिया l विश्वदर्शन एक गाँव में रहते थे , पदच्युत होने के बाद वे वहीँ आकर बड़े परिश्रम का जीवन बिताने लगे l एक दिन राजा बालीक को यह देखने की इच्छा हुई कि विश्वदर्शन की स्थिति कैसी है ? वे वेश बदलकर उसी गाँव की ओर चल पड़े l गाँव पहुंचकर उन्होंने देखा कि विश्वदर्शन के मकान के सामने पच्चीसों व्यक्ति बैठे बातचीत कर रहे हैं और प्रसन्न हैं l विश्वदर्शन स्वयं बड़े प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे हैं l छद्म वेश धारी बालीक ने विश्वदर्शन से पूछा --- " महानुभाव ! आपको तो राजा ने पदच्युत कर दिया है , फिर भी आप इतने प्रसन्न हैं , इसका रहस्य क्या है ? " विश्वदर्शन ने राजा को पहचान लिया और बोले ---- " रहस्य है ' मनुष्यता ' , महाराज ! पहले तो लोग मुझसे डरते थे , पर अब वह डर नहीं है , इसलिए लोगों से खुलकर बात करने और सेवा , सहानुभूति व्यक्त करने में बड़ा आनंद आता है l " महाराज बालीक ने अनुभव किया , सच है कि पद से लोग डर सकते हैं , सम्मान तो मनुष्यता के श्रेष्ठ गुणों का होता है l लौटते समय वे विश्वदर्शन को पुन: साथ लेते आए और उन्हें उनका पद लौटा दिया l
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