पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " अहंकारी व्यक्ति दुर्गुणों की दुर्गन्ध तो अपने व्यक्तित्व में सम्मिलित करता ही है , साथ ही जीवन विकास से भी हाथ धो बैठता है l इसलिए जीवन में यदि आगे बढ़ना है , विकास करना है , व्यक्तित्व को सँवारना है तो सबसे पहले विनम्रता और शालीनता को अपनाना होगा l विनम्रता से ही व्यक्ति का विवेक बढ़ता है , समझदारी बढती है और वह औचित्य पूर्ण कार्य कर पाता है l विनम्रता का तात्पर्य केवल बाहरी रूप से सरल , सहनशील और शालीन बनना नहीं है , बल्कि आंतरिक द्रष्टि से भी संवेदनशील होना है l " ------- कल्याण मासिक पत्रिका के संपादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी भीषण ठण्ड के दिनों में आधी रात के समय गीता -वाटिका , गोरखपुर से निकलते और ठण्ड से सिकुड़ रहे गरीबों को कंबल चादर ओढ़ा दिया करते थे l एक बार एक पत्रकार ने गरीबों को कंबल ओढ़ाते हुए उनका फोटो ले लिया , तो पोद्दार जी ने बड़ी विनम्रता से कहा ---- " यह फोटो अख़बार में मत छापना , न ही इस बारे में किसी दूसरे को बताना , नहीं तो मैं पुण्य की जगह पाप का भागी बनूँगा l प्रचार के उदेश्य से की गई सेवा पुण्य नहीं , पाप का मार्ग बताई गई है l
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