अनंत ब्रह्माण्ड पर आधिपत्य जमाने की मनुष्य की व्यर्थ चेष्टा पर उसे चेताते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार बट्रेंड रसेल ने लिखा है ----- " अच्छा होता कि हम अपनी धरती ही सुधारते और बेचारे चंद्रमा को उसके भाग्य पर छोड़ देते l अभी तक हमारी मूर्खताएं धरती तक ही सीमित रही हैं l उन्हें ब्रह्माण्डव्यापी बनाने में मुझे कोई ऐसी बात प्रतीत नहीं होती , जिस पर विजय उत्सव मनाया जाए l चंद्रमा पर मनुष्य पहुँच गया तो क्या ? यदि हम धरती को ही सुखी नहीं बना पाए तो यह प्रगति बेमानी है l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " प्रगति के नाम पर विकृति को अपने जीवन का लक्ष्य बनाए चल रहे इनसान के लिए बट्रेंड रसेल की यह पंक्तियाँ आज बहुत सार्थक प्रतीत होती हैं l विज्ञानं ने हमारे जीवन को सुख -सुविधा और विलासिता की चीजों से भर दिया है l भौतिक प्रगति तो हुई है लेकिन हम आंतरिक रूप से कंगाल हो चुके हैं l मनुष्य भावनाओं और संवेदनाओं से रहित एक रासायनिक यंत्र बन गया है l l विज्ञान का प्रभाव क्षेत्र कितना ही व्यापक और उपलब्धियां कितनी ही चमत्कारी क्यों न हों , इसके अलावा भी जीवन में भावनात्मक संतुष्टि , मानवीय संवेदना जरुरी है , जिसके अभाव में जिंदगी पंगु हो जाएगी l " विज्ञान की उपलब्धियों के संबंध में बंट्रेंड रसेल का कथन है ----- " हम एक ऐसे जीवन प्रवाह के बीच हैं , जिसका साधन है मानवीय दक्षता और साध्य है मानवीय मूर्खता l मानव जाति अब तक जीवित रह सकी तो अपने अज्ञान और अक्षमता के कारण ही , परन्तु यदि ज्ञान व क्षमता मूढ़ता के साथ युक्त हो जाएँ तो उसके बचे रहने कोई संभावना नहीं है l अत: विज्ञानं के साथ विवेक एवं औचित्य पूर्ण क्रियाकुशालता की भी आवश्यकता है l "
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