राजा रणजीत सिंह का शासन काल था l प्रजा सुखी थी l उनके पराक्रम व न्यायप्रियता की ख्याति सर्वत्र थी l एक दिन वे नगर भ्रमण को निकले कि एक पत्थर उनके सिर पर आकर लगा l खून की धारा बह निकली l सैनिकों ने अपराधी को पकड़ा तो पता चला कि वह एक गरीब विधवा महिला थी l उसे राजा के सम्मुख प्रस्तुत किया गया l राजा रणजीत सिंह ने उससे पत्थर फेंकने का कारण पूछा तो वह महिला महिला बोली ---- " महाराज ! मैं विधवा हूँ l मेरे दो छोटे -छोटे बच्चे हैं l आमदनी का मेरे पास कोई साधन नहीं है l मेरे बच्चों को भूख लगी थी l सामने बेर के पेड़ पर पके बेर देखकर उन पर निशाना लगाकर पत्थर फेंका , पर वह भूलवश आपको लग गया l यदि मुझे पता होता कि आप यहाँ से निकल रहे हैं , तो मैं कदापि ऐसा नहीं करती l मुझे मेरे इस जघन्य अपराध के लिए मृत्यु दंड दिया जाए , परन्तु मेरे दोनों बच्चों को माफ कर इन्हें आप अपनी शरण में रख लें l " उस विधवा की बातें सुनकर राजा रणजीत सिंह बोले ---- " इस घटना में दो अपराधी हैं l पत्थर फेंकने का अपराध महिला का है और उसे पत्थर फेंकने के लिए विवश करने का अपराध मेरा है l मैं राजा हूँ , मेरे रहते प्रजा में किसी को भूखे नहीं रहना चाहिए l मेरे अपराध का दंड यह पत्थर मुझे दे चुका l इस महिला के अपराध के एवज में मैं इसके पूरे परिवार के भरण -पोषण की पूरी जिम्मेदारी लेता हूँ l " महाराजा रणजीत सिंह के वचनों को सुनकर वह महिला भावविभोर हो गई और समस्त नागरिक महाराज की प्रशंसा करने लगे l
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