19 September 2024

WISDOM ----

   ईर्ष्या  , द्वेष , अहंकार   जैसे   दुर्गुणों  से  ऋषि , मुनि , देवता  भी  नहीं  बचे  हैं  l   लेकिन    वे  श्रेष्ठ  इसलिए  हैं   क्योंकि  उन्होंने  अपनी  गलतियों  को  समझा , उन्हें  स्वीकार  किया   और  फिर  से  उन  गलतियों  को  न  दोहराने  का  संकल्प  लेकर   प्रायश्चित  भी  किया  ,  तब  कहीं  जाकर  वे  राजर्षि , महर्षि  जैसे सम्मान  के  अधिकारी  बने  l  पुराण  की  कथा  है  ---- ब्रह्मर्षि  वसिष्ठ  के  पास   नंदिनी  गौ  थी  ,  उसकी  सामर्थ्य  से  वे  अपने  आश्रम  की ,  आश्रम  में  आने  वाले  आगंतुकों आगंतुकों  की   और  आश्रम  में  विद्या अध्ययन  करने  वाले  छात्र -छात्राओं  की   अनिवार्य  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  करते  थे  l  जब  विश्वामित्र  राजा  थे   और   अपनी  विशाल  सेना  के  साथ  ऋषि  वसिष्ठ  के  आश्रम  में  पहुंचे  थे   तब  ऋषि  वसिष्ठ  ने  उनका  भी  भव्य  स्वागत -सत्कार  किया  था  l   विश्वामित्र  ने  देखा  की  एक  तपस्वी  ने  इतना  भव्य  स्वागत   कैसे  किया  ,  उन्हें  ज्ञात  हुआ  कि  यह  सब  नंदिनी  गौ  की  कृपा  से  है  l  तब  उन्होंने  ऋषि  वसिष्ठ  से  कहा  कि  नंदिनी  को  आप  हमें  दे  दो  l  ऋषि  वसिष्ठ  ने  साफ  इनकार  कर  दिया  , तब  तो  विश्वामित्र  का  हठ  और  अहंकार  उनके  सिर  चढ़  गया  l  उन्होंने  नंदिनी  गौ  को  प्राप्त  करने  की  ठान  ली  और   पहले  अपने  सैन्य बल  का  प्रयोग  किया  , उसमें  असफल  हुए   l  फिर  तप  किया  , अनेक  दिव्यास्त्र  प्राप्त  किए  ,  लेकिन   ऋषि  वसिष्ठ  के  ब्रह्म दंड  के  आगे  उनकी  एक  न  चली , बुरी  तरह  असफल  हुए  l  इसके  बाद  उन्होंने  तप  के   अनेक  प्रयोग  किए ,  न  जाने  कितनी  तरह  की  विद्याएँ  प्राप्त  कीं   और  सभी  का  एक  साथ  उन्होंने  ऋषि  वसिष्ठ  पर  प्रयोग  किया ,  लेकिन  उन्हें  असफलता  ही  मिली  l  जितना  वे  असफल  हो  रहे  थे  उनका  वैर , हठ    और  अहंकार  उतना  ही  बढ़ता  जा  रहा  था  l  उन्होंने  ऋषि  वसिष्ठ  के  सौ  पुत्रों  का  विनाश  किया  l   ऋषि  वसिष्ठ  में  गजब  का  धैर्य  और  सहनशीलता  थी  ,  वे  विश्वामित्र  से  रुष्ट  नहीं  हुए  और  बड़े  धैर्य  के  साथ  इस  महाशोक  को  सहन  किया  l  विश्वामित्र  का  वैर  नहीं  मिटा   और  एक  पूर्णिमा  की  रात्रि  को  वे  ऋषि  वसिष्ठ  की  हत्या  करने  उनके  आश्रम  पहुंचे  l  विश्वामित्र  ने  महान  तप  किया  था  , लेकिन  हठ  और  अहंकार  की  वजह  से   वे    हत्या  जैसा  दुष्कृत्य  करने  को  उतारू  थे  l  जब  वे  ऋषि  वसिष्ठ  के  आश्रम  में  पहुंचे  , उस  समय   ऋषि  अपनी  पत्नी  अरुंधती  से  कह  रहे  थे  --- "  देवी  !  देखो   आज  चंद्रमा   सब  ओर  निर्मल  , धवल  प्रकाश  फैला  रहा  है  l  इस  प्रकाश  की  निर्मलता ,  शीतलता , धवलता  ऋषि श्रेष्ठ  विश्वामित्र  के   महान    तप  की  तरह  है  l  "  यह    सुनकर  विश्वामित्र  का  ह्रदय  ग्लानि  से  भर  गया  l  ऋषि  वसिष्ठ  पर  उन्होंने  इतने  वार  किए , उन्हें  कष्ट  दिया  , वे  उनकी  प्रशंसा  कर  रहे  हैं   l  विश्वामित्र  चमकती  कृपाण  लेकर  ऋषि  वसिष्ठ  के  सम्मुख  आए  और   कृपाण  सहित  उनके  चरणों चरणों  में  गिर  पड़े  l  ऋषि  वसिष्ठ  ने  उनको  उठाते  हुए  कहा  ---- " हे  ब्रह्मर्षि !  उठो  l "    गायत्री  महामंत्र  के  ऋषि  विश्वामित्र  हैं   l  अपने  महान  तप   के  कारण  वे   ब्रह्मर्षि  के  पद  पर  पहुंचे  l  

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