फूल कहीं भी खिलें पर उसकी सुगन्ध नहीं बदली जा सकती । गुलाब को भारत में लगायेंगे तो भी गुलाब जैसी सुगन्ध फैलाएगा और इंग्लैंड में भी वह गेंदा नहीं बन जायेगा रहेगा वह गुलाब ही |
ब्रिटिश सरकार की सेवा में निरत भारतीय डॉक्टर कृष्णघन घोष की यह हार्दिक इच्छा थी कि उनके पुत्र पूरे अंग्रेज साहब बने । इस विचार से उन्होंने अपनी पत्नी को जब दूसरा पुत्र गर्भ में था, इंग्लैंड भिजवा दिया ताकि बालक को इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त हो ।
बालक इंग्लैंड में उत्पन्न हुआ-- वारीन्द्र घोष--- अंग्रेजी बोलता, अंग्रेजों जैसी वेशभूषा धारण करता, पर उसकी आत्मा भारतीय थी । अपने देश और संस्कृति के प्रति उनके ह्रदय में अपार श्रद्धा थी ।
वारीन्द्र घोष एक महान देशभक्त थे, बंगाल में क्रान्ति का सूत्रपात करने का श्रेय इन्हें दिया जा सकता है । वारीन्द्र घोष के कुशल संगठन का ही परिणाम था कि अन्याय के प्रतिकार के लिए कितने ही युवक तत्पर हो गये ।
डॉक्टर कृष्णघन घोष ने अपने बड़े पुत्र अरविन्द जिनका जन्म 15 अगस्त 1872 को हुआ था, इंग्लैंड में ही रखा, वहीं पढ़ाया । वही आगे चलकर भरतीय संस्कृति के महान द्रष्टा बने जिन्हें समस्त संसार योगीराज अरविन्द के रूप में जानता है । महर्षि अरविन्द ने एक ऐसे नए संसार का स्वप्न देखा जिसका आधार अध्यात्म रहेगा और उसमे बहुत से कार्य आत्मशक्ति से संपन्न कर लिए जायेंगे, इसलिए उस समय आज-कल के लड़ाई-झगड़ों का अंत हो जायेगा और मनुष्य एक ऐसे उच्च धरातल पर पहुँच जायेगा जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती । उनके जन्म दिन पर ही भारत ने अपना पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त किया ।
ब्रिटिश सरकार की सेवा में निरत भारतीय डॉक्टर कृष्णघन घोष की यह हार्दिक इच्छा थी कि उनके पुत्र पूरे अंग्रेज साहब बने । इस विचार से उन्होंने अपनी पत्नी को जब दूसरा पुत्र गर्भ में था, इंग्लैंड भिजवा दिया ताकि बालक को इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त हो ।
बालक इंग्लैंड में उत्पन्न हुआ-- वारीन्द्र घोष--- अंग्रेजी बोलता, अंग्रेजों जैसी वेशभूषा धारण करता, पर उसकी आत्मा भारतीय थी । अपने देश और संस्कृति के प्रति उनके ह्रदय में अपार श्रद्धा थी ।
वारीन्द्र घोष एक महान देशभक्त थे, बंगाल में क्रान्ति का सूत्रपात करने का श्रेय इन्हें दिया जा सकता है । वारीन्द्र घोष के कुशल संगठन का ही परिणाम था कि अन्याय के प्रतिकार के लिए कितने ही युवक तत्पर हो गये ।
डॉक्टर कृष्णघन घोष ने अपने बड़े पुत्र अरविन्द जिनका जन्म 15 अगस्त 1872 को हुआ था, इंग्लैंड में ही रखा, वहीं पढ़ाया । वही आगे चलकर भरतीय संस्कृति के महान द्रष्टा बने जिन्हें समस्त संसार योगीराज अरविन्द के रूप में जानता है । महर्षि अरविन्द ने एक ऐसे नए संसार का स्वप्न देखा जिसका आधार अध्यात्म रहेगा और उसमे बहुत से कार्य आत्मशक्ति से संपन्न कर लिए जायेंगे, इसलिए उस समय आज-कल के लड़ाई-झगड़ों का अंत हो जायेगा और मनुष्य एक ऐसे उच्च धरातल पर पहुँच जायेगा जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती । उनके जन्म दिन पर ही भारत ने अपना पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त किया ।
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