नदी के किनारे संत ज्ञानेश्वर जा रहे थे l समीप में ही एक लड़का स्नान कर रहा था l एकाएक लड़के का पैर फिसल गया और वह तेज बहाव में चला गया l लड़का सहायता के लिए चिल्लाया , पर किनारे पर बैठे महात्मा अपने जप में लगे रहे l एक बार डूबते बालक को देख लिया और फिर आँखें बंद कर लीं l संत ज्ञानेश्वर बिना विलम्ब किये नदी में कूद पड़े और डूबते बालक को बाहर खींच लाये l
किनारे पर जप कर रहे महात्मा से संत ज्ञानेश्वर ने पूछा , आप क्या कर रहे हैं ? महात्मा ने कहा --- जप कर रहे हैं , और पुन: आँख बंद कर ली l संत ने पूछा -- क्या ईश्वर के दर्शन हुए ?
महात्मा ने कहा --- नहीं , मन स्थिर नहीं हो रहा है l
संत ज्ञानेश्वर ने कहा --- तो उठो , पहले दीन - दुःखियों की सेवा करो , उनके कष्टों में हिस्सा बंटाओ अन्यथा उपासना का कोई विशेष लाभ नहीं मिलेगा l महात्मा को अपनी भूल मालूम हुई कि सच्चा ज़प तो ये था कि डूबते हुए बच्चे को बचाया जाता l उस दिन से महात्मा उपासना के साथ दीन - दुःखियों की सेवा में लग गए l
किनारे पर जप कर रहे महात्मा से संत ज्ञानेश्वर ने पूछा , आप क्या कर रहे हैं ? महात्मा ने कहा --- जप कर रहे हैं , और पुन: आँख बंद कर ली l संत ने पूछा -- क्या ईश्वर के दर्शन हुए ?
महात्मा ने कहा --- नहीं , मन स्थिर नहीं हो रहा है l
संत ज्ञानेश्वर ने कहा --- तो उठो , पहले दीन - दुःखियों की सेवा करो , उनके कष्टों में हिस्सा बंटाओ अन्यथा उपासना का कोई विशेष लाभ नहीं मिलेगा l महात्मा को अपनी भूल मालूम हुई कि सच्चा ज़प तो ये था कि डूबते हुए बच्चे को बचाया जाता l उस दिन से महात्मा उपासना के साथ दीन - दुःखियों की सेवा में लग गए l
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