वस्तुओं के प्रति आकर्षण , अतृप्त इच्छाओं का नाम ही तृष्णा है l
'बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ जाये l
घटत -घटत फिर न घटे बस समूल कुम्हलाय l l
भाव यह है कि कमल का फूल पानी में डूबता नहीं l पानी बढ़ने से कमलनाल बढ़ती जाती है पर पानी घटने से घटती नहीं , समूल कुम्हला जाती है l सम्पतिवानों की इच्छाएं असीम बढ़ती जाती हैं , पर जैसे ही सम्पति गई इच्छाएं घटती नहीं , भाव ( आदत ) बनी रहती है l
यह तृष्णा ही मनुष्य की अशांति और तनाव का कारण है l . ' रामचरितमानस ' में सुरसा के प्रसंग के माध्यम से इसका समाधान सुझाया है ----- श्री हनुमानजी जब सीताजी का पता लगाने के लिए लंका में अन्दर जाने लगे तो सुरसा नामक राक्षसी ने उन्हें पकड़ लिया और मुंह में रखकर चबाने लगी l हनुमानजी ने अपना बदन बढ़ाना शुरू किया तो सुरसा ने भी अपना मुंह फाड़ दिया ----
" जस - जस सुरसा बदनु बढ़ावा l
तासु दूंगा कपि रूप देखावा l l "
बढ़ते - बढ़ते जब उन्होंने देखा कि सुरसा का मुंह सोलह योजन का हो गया तो हनुमानजी बत्तीस योजन के हो गए l अब हनुमानजी समझ गए कि यह सुरसा कम होने वाली नहीं है , यह अपना मुंह कई योजन और चौड़ा कर लेगी l अत: हनुमानजी ने ' अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा l '
बहुत छोटा सा रूप बना लिया l
' मसक समान रूप कपि धरी l ' --- छोटा सा रूप बनाकर सुरसा की दाढ से निकल गए l
मनोकामनाओं की कोई सीमा नहीं है l रावण , सिकंदर , हिरण्यकशिपु किसी की कामनाएं पूरी नहीं हुईं फिर हमारी और आपकी कैसे पूरी हो सकती हैं ?
'बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ जाये l
घटत -घटत फिर न घटे बस समूल कुम्हलाय l l
भाव यह है कि कमल का फूल पानी में डूबता नहीं l पानी बढ़ने से कमलनाल बढ़ती जाती है पर पानी घटने से घटती नहीं , समूल कुम्हला जाती है l सम्पतिवानों की इच्छाएं असीम बढ़ती जाती हैं , पर जैसे ही सम्पति गई इच्छाएं घटती नहीं , भाव ( आदत ) बनी रहती है l
यह तृष्णा ही मनुष्य की अशांति और तनाव का कारण है l . ' रामचरितमानस ' में सुरसा के प्रसंग के माध्यम से इसका समाधान सुझाया है ----- श्री हनुमानजी जब सीताजी का पता लगाने के लिए लंका में अन्दर जाने लगे तो सुरसा नामक राक्षसी ने उन्हें पकड़ लिया और मुंह में रखकर चबाने लगी l हनुमानजी ने अपना बदन बढ़ाना शुरू किया तो सुरसा ने भी अपना मुंह फाड़ दिया ----
" जस - जस सुरसा बदनु बढ़ावा l
तासु दूंगा कपि रूप देखावा l l "
बढ़ते - बढ़ते जब उन्होंने देखा कि सुरसा का मुंह सोलह योजन का हो गया तो हनुमानजी बत्तीस योजन के हो गए l अब हनुमानजी समझ गए कि यह सुरसा कम होने वाली नहीं है , यह अपना मुंह कई योजन और चौड़ा कर लेगी l अत: हनुमानजी ने ' अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा l '
बहुत छोटा सा रूप बना लिया l
' मसक समान रूप कपि धरी l ' --- छोटा सा रूप बनाकर सुरसा की दाढ से निकल गए l
मनोकामनाओं की कोई सीमा नहीं है l रावण , सिकंदर , हिरण्यकशिपु किसी की कामनाएं पूरी नहीं हुईं फिर हमारी और आपकी कैसे पूरी हो सकती हैं ?
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