काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या - द्वेष --- ये मनोविकार ही परिवार और समाज में अशांति उत्पन्न करते हैं और इन मनोविकारों से ग्रस्त व्यक्ति स्वयं कष्ट उठाता है l युग चाहे कोई भी हो , जिसमे भी ये मनोविकार होते हैं , प्रकृति उन्हें अपने तरीके से दण्डित करती है l
रामचरितमानस में हम देखें तो राजा दशरथ महारानी कैकेयी के सौन्दर्य पर मुग्ध थे , महारानी को अपने सौन्दर्य का बहुत अभिमान व अहंकार था l इससे भी अधिक घातक था मंथरा जैसी दासी का कुसंग l इस कुसंग ने महारानी कैकेयी के अहंकार और क्रोध को इतना उभार दिया कि राम पर अपने पुत्र से भी ज्यदा वात्सल्य लुटाने वाली कैकेयी ने राम के राजतिलक को रुकवाकर अपने पुत्र भरत के लिए राज सिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा l मंथरा भी बहुत ईर्ष्यालु थी वह राम से ईर्ष्या करती थी और भरत को अधिक महत्व देती थी l
राजा दशरथ अपने पुत्र राम से अतिशय मोहग्रस्त थे l
इसी तरह द्वापर युग में धृतराष्ट्र पुत्रमोह में अंधे थे , दुर्योधन अति अहंकारी था l हर युग में मनुष्य इन मनोविकारों से ग्रस्त रहा है लेकिन वर्तमान में इन मनोविकारों का रूप अत्यंत भयावह और विकृत हो चुका है l कर्मकांड और आडम्बर को ही सब कुछ मानने के कारण मनुष्य की चेतना सुप्त हो गई है , मनुष्य संवेदनहीन हो गया है l महाकाव्यों से शिक्षा लेने की जरुरत है l
No comments:
Post a Comment