' बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय l जो दिल खोजा आपना , मुझसे बुरा न कोय l
आचार्य श्री ने लिखा है ---- 'विवेकहीन मनुष्य अपने शत्रुओं की खोज में अपने समय को गंवाते रहते हैं l इन्हे खोजने व इनसे निपटने के लिए वे भारी - भरकम व्यवस्था करते हैं l अनेकों से इसके लिए सहायता की याचना व प्रार्थना करते हैं , ताकि वे अपने शत्रुओं को पहचान सकें , उन्हें परास्त कर सकें लेकिन ये सारे प्रयास , इस काम में नियोजित सभी पुरुषार्थ हमेशा निष्फल ही साबित होते रहते हैं क्योंकि व्यक्ति के यथार्थ शत्रु तो स्वयं के अस्तित्व में छुपे रहते हैं l इन्हे कहीं बाहर ढूंढने - तलाशने की कोशिश ही बेकार है l इन्हे तलाशने के लिए जरुरत है स्वयं के विवेक की l इनकी सही पहचान के लिए आत्मसमीक्षा की आवश्यकता है l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- सद्गुणों की सम्पति मनुष्य को समर्थ बनाती है और दुर्गुण ही उसे दुर्बल बनाते हैं l जो वासनाओं के अँधेरे से घिरे हैं , उनसे बड़ा असहाय इस जगत में अन्य कोई भी नहीं है l
आचार्य श्री ने लिखा है ---- 'विवेकहीन मनुष्य अपने शत्रुओं की खोज में अपने समय को गंवाते रहते हैं l इन्हे खोजने व इनसे निपटने के लिए वे भारी - भरकम व्यवस्था करते हैं l अनेकों से इसके लिए सहायता की याचना व प्रार्थना करते हैं , ताकि वे अपने शत्रुओं को पहचान सकें , उन्हें परास्त कर सकें लेकिन ये सारे प्रयास , इस काम में नियोजित सभी पुरुषार्थ हमेशा निष्फल ही साबित होते रहते हैं क्योंकि व्यक्ति के यथार्थ शत्रु तो स्वयं के अस्तित्व में छुपे रहते हैं l इन्हे कहीं बाहर ढूंढने - तलाशने की कोशिश ही बेकार है l इन्हे तलाशने के लिए जरुरत है स्वयं के विवेक की l इनकी सही पहचान के लिए आत्मसमीक्षा की आवश्यकता है l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- सद्गुणों की सम्पति मनुष्य को समर्थ बनाती है और दुर्गुण ही उसे दुर्बल बनाते हैं l जो वासनाओं के अँधेरे से घिरे हैं , उनसे बड़ा असहाय इस जगत में अन्य कोई भी नहीं है l
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