संत इब्राहीम ने ईश्वर भक्ति के लिए घर छोड़ दिया और वे भिक्षाटन पर निर्वाह कर के साधनारत रहने लगे l किसी किसान के यहाँ वे भिक्षा मांग रहे थे , तो उसने रोककर कहा --- " आप जवान हैं , परिश्रमपूर्वक निर्वाह करें l बचे समय में साधना करें l समर्थ का भिक्षा माँगना उचित नहीं l " इब्राहीम को बात जँच गई l उनने इस सदुपदेशकर्ता का एहसान माना और कहा ---- " तो फिर इतनी कृपा और करें कि मुझे काम दिला दें , ताकि गुजारे के संबंध में निश्चिन्त रहकर भजन करता रह सकूँ l " किसान का एक आम का बगीचा था l उसकी रखवाली का काम सौंप दिया l निर्वाह का प्रबंध हो गया , दोनों को सुविधा रही l बहुत दिनों बाद आम की फसल के दिनों में किसान बगीचे में पहुंचा और मीठे आम तोड़कर लाने के लिए कहा l इब्राहीम ने बड़े और पके फल लाकर सामने रख दिए l वे सभी खट्टे थे l नाराजी का भाव दिखाते हुए किसान ने कहा --- " इतने दिन यहाँ रहते हुए हो गए , इस पर भी यह नहीं देखा कि कौन पेड़ खट्टे और कौन मीठे फलों का है l " इब्राहीम ने नम्रता पूर्वक कहा --- " मैंने कभी किसी पेड़ का फल नहीं चखा l बिना आपकी आज्ञा के चोरी कर के मैं क्यों चखता ? " किसान इस रखवाले की ईमानदारी और बफादारी पर बहुत प्रसन्न हुआ l उसने कहा --- " आप पूरे समय भजन करें l निर्वाह मिलता रहेगा l रखवाला दूसरा रख लेंगे l इब्राहीम दूसरे दिन बड़े सबेरे ही उठकर अन्यत्र चले गए l चिट्ठी रख गए , उसमे लिखा था --- " आपने आरंभ में कहा था बिना परिश्रम के नहीं खाना चाहिए l आपकी उस अनुशासन भरी शिक्षा से ही मेरी श्रद्धा बढ़ी l अब तो आप ठीक उलटा उपदेश करने लगे l मुफ्त का खाने लगूँ , यह कैसे होगा ? आपकी बदली हुई शिक्षा को देखकर मैंने चला जाना ही उचित समझा l " जिसके संस्कार श्रेष्ठ होते हैं वह कभी अपने पथ से भ्रमित नहीं होता , कोई भी लालच उसे डिगा नहीं पाता l
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