गाँधी जी से एक मारवाड़ी सेठ मिलने आए l वे मारवाड़ी वेशभूषा में थे और बड़ी पगड़ी बाँधे थे l बातचीत में उन्होंने पूछा ---- " गांधीजी आपके नाम पर लोग देश भर में गाँधी टोपी पहनते हैं और आप इसका इस्तेमाल नहीं करते , ऐसा क्यों ? " गाँधी जी बोले ---- " आप बिलकुल ठीक कहते हैं , पर आप अपनी पगड़ी को उतार कर तो देखिए l इसमें बीस टोपियाँ बन सकती हैं l जब उतना कपड़ा आप जैसे व्यक्ति अपनी पगड़ी में लगा सकते हैं तो बेचारे उन्नीस आदमियों को नंगे सिर रहना पड़ेगा l उन्ही उन्नीस आदमियों में से मैं भी एक हूँ l " गाँधी जी का उत्तर सुनकर सेठ को शर्मिंदगी महसूस हुई l गाँधी जी बोले --- " अपव्यय , संचय की वृत्ति अन्य व्यक्तियों को अपने हिस्से से वंचित कर देती है तो मेरे जैसे अनेक व्यक्तियों को टोपी से वंचित रहकर उस संचय की पूर्ति करनी पड़ती है l "
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