पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- ' हम सब के भीतर खुशियों का खजाना छिपा हुआ है l खुशियाँ चाहते हो तो सबसे पहले अपने अन्तस् में खोजो l जो यहाँ खोजने की कोशिश न कर के बाहर खोजता है , वह सदा खोजता ही रहता है , किन्तु पाता कुछ भी नहीं l "--------- एक भिखारी था , वह जिंदगी भर एक जगह पर बैठकर भीख मांगता रहा l उसकी ख्वाहिश थी कि वह भी धनवान बने , इसलिए वह दिन में ही नहीं , रात में भी भीख मांगता था l जो कुछ उसे भीख में मिलता उसे खरच करने के बजाय जोड़ता रहता l अपनी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उसने दिन - रात भरपूर कोशिश की , लेकिन वह कभी भी धनवान न हो सका l वह भिखारी की तरह ही जिया और भिखारी की तरह मरा l जब वह मरा तो कफ़न के लायक भी पूरे पैसे उसके पास नहीं थे l उसके मर जाने के बाद आस - पास के लोगों ने उसका झोंपड़ा तोड़ दिया l फिर सबने मिलकर वहां की जमीन साफ की l सफाई करने वाले इन सभी को तब भारी अचरज हुआ जब उन्हें उस जगह पर बड़ा भारी खजाना गड़ा हुआ मिला l यह ठीक वही जगह थी , जिस जगह पर बैठकर वह भिखारी भीख माँगा करता था l जहाँ पर वह बैठता था , उसके ठीक नीचे यह भारी खजाना गड़ा हुआ था l ---- जो खुशियों की तलाश में बाहर भटकते हैं , उनकी हालत भी कुछ ऐसी ही है l आचार्य श्री लिखते हैं --- बड़े से बड़े खोजियों ने , यात्रियों ने सारी दुनिया में , सारी उम्र भटक कर अंतत: यह खुशियों का खजाना अपने ही अन्तस् में पाया है l
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