10 November 2020

WISDOM -----

   महर्षि  रमण   के  आश्रम  के  समीपवर्ती  गाँव  में   एक  अध्यापक  रहते  थे  l   एक  बार  अपने  पारिवारिक  जीवन  से  अत्यधिक   क्षुब्ध  होकर   आत्महत्या  करने  की  बात  सोचने  लगे  l   किसी  निर्णय  पर  पहुँचने  से  पहले   उन्होंने  महर्षि   की  सम्मति  जाननी   चाही    और  उनके  आश्रम  में  पहुँच  गए  l   महर्षि  रमण   आश्रमवासियों  के   भोजन  के  लिए  पत्तलें  बना  रहे  थे   l   दिव्यद्रष्टा  ऋषि  ने  अध्यापक  महोदय   के  आने  का  अभिप्राय  समझ  लिया   था  l   प्रणाम  करने  के   उपरांत  अध्यापक  बोले  -- ' भगवन  !   आप  इन  पत्तलों  को   इतने  परिश्रम  के  साथ  बना  रहे  हैं   और  आश्रमवासी   इनमें  खाना  खाकर   फेंक  देंगे  l '  महर्षि  मुसकराते   हुए  बोले  ---- '  सो  तो  ठीक  है  ,  वस्तु   का   पूर्ण  उपयोग  हो  जाने  पर   उसे  फेंक  देना  बुरा  नहीं  है  ,   बुरा  तो  तब  है   जब  उसे  अच्छी  अवस्था  में  ही   ख़राब  कर  के  फेंक  दिया  जाये   l  '   अध्यापक  महोदय  को   महर्षि  का  मर्मस्पर्शी   अभिप्राय   समझ  में  आ  गया    और  उन्होंने  आत्महत्या  करने  का   इरादा  छोड़  दिया  l 

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