राजकुमार सिद्धार्थ और मंत्री पुत्र देवदत्त दोनों साथ - साथ बाग़ में घूमने जा रहे थे l सहसा सिद्धार्थ ने देखा दो सुन्दर राजहंस आकाश में जा रहे हैं l उन्हें देखकर वह प्रसन्न हो उठा और बोला ---- देवदत्त ! देखो ये कितने सुन्दर पक्षी जा रहे हैं l देवदत्त ने ऊपर देखा और अपना धनुष - बाण उठाया , एक पक्षी को मार गिराया l सिद्धार्थ की प्रसन्नता , व्याकुलता में परिणत हो गई l सिद्दार्थ दौड़े , और रक्त से सने राजहंस को गोदी में उठा लिया और रोने लगे l
देवदत्त ने कहा --- इस पक्षी पर मेरा अधिकार है सिद्धार्थ l देखते नहीं हो इसे मैंने बाण से मारा है l सिद्दार्थ बिना कुछ कहे - सुने पक्षी को लेकर भवन चले गए l वहां उसको पानी पिलाया और बड़े प्यार से उसकी सेवा करने लगे l देवदत्त ने उस समय राजकुमार समझकर कुछ झगड़ा नहीं किया , लेकिन फिर न्याय प्राप्ति के लिए महाराज के पास जाकर शिकायत की l
महाराज ने दोनों को राजदरबार में उपस्थित होने की आज्ञा दी l एक और देवदत्त खड़े थे और दूसरी ओर सिद्धार्थ अपनी गोद में पक्षी को लिए खड़े थे l देवदत्त ने अपना तर्क प्रस्तुत किया --- महाराज मैंने पक्षी को बाण मारा , इसलिए इस पर मेरा अधिकार है l सिद्धार्थ ने कहा --- मैंने इसे बचाया , इसलिए इस पर मेरा अधिकार होना चाहिए l महाराज ने पक्षी को दोनों के बीच छुड़वा दिया , वह राजहंस स्वयं ही तेजी से सिद्धार्थ के पास चला गया l मूक पक्षी ने स्वयं ही सिद्ध कर दिया कि मारने वाला नहीं , बचाने वाला बड़ा होता है l
अंत:करण की यह करुणा की भावना ही विस्तार पाकर व्यक्ति को विश्वमानव बना देती है l सिद्धार्थ ही करुणावतार भगवान बुद्ध कहलाए , जिन्हे संसार नमन करता है l
देवदत्त ने कहा --- इस पक्षी पर मेरा अधिकार है सिद्धार्थ l देखते नहीं हो इसे मैंने बाण से मारा है l सिद्दार्थ बिना कुछ कहे - सुने पक्षी को लेकर भवन चले गए l वहां उसको पानी पिलाया और बड़े प्यार से उसकी सेवा करने लगे l देवदत्त ने उस समय राजकुमार समझकर कुछ झगड़ा नहीं किया , लेकिन फिर न्याय प्राप्ति के लिए महाराज के पास जाकर शिकायत की l
महाराज ने दोनों को राजदरबार में उपस्थित होने की आज्ञा दी l एक और देवदत्त खड़े थे और दूसरी ओर सिद्धार्थ अपनी गोद में पक्षी को लिए खड़े थे l देवदत्त ने अपना तर्क प्रस्तुत किया --- महाराज मैंने पक्षी को बाण मारा , इसलिए इस पर मेरा अधिकार है l सिद्धार्थ ने कहा --- मैंने इसे बचाया , इसलिए इस पर मेरा अधिकार होना चाहिए l महाराज ने पक्षी को दोनों के बीच छुड़वा दिया , वह राजहंस स्वयं ही तेजी से सिद्धार्थ के पास चला गया l मूक पक्षी ने स्वयं ही सिद्ध कर दिया कि मारने वाला नहीं , बचाने वाला बड़ा होता है l
अंत:करण की यह करुणा की भावना ही विस्तार पाकर व्यक्ति को विश्वमानव बना देती है l सिद्धार्थ ही करुणावतार भगवान बुद्ध कहलाए , जिन्हे संसार नमन करता है l
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