कथा है ---- राजा भोज अपने रथ से उद्दान की ओर जा रहे थे , तभी उस काल के योगी , तपस्वी , गायत्री सिद्ध साधक गोविन्द को देखकर उन्होंने रथ रोकने का आदेश दिया और रथ से उतरकर राजा ने योगी का अभिवादन किया l गोविन्द ने राजा के अभिवादन का उत्तर न देते हुए अपनी दोनों आँखें मूँद ली l गोविन्द की प्रतिक्रिया से विस्मित राजा ने कहा ---- " हे महातपस्वी ! आपने हमें आशीर्वाद देना तो दूर , अपनी आँखें ही बंद कर लीं l हमसे ऐसी क्या भूल हो गई l इसे स्पष्ट करने की कृपा करें l "
गोविन्द ने कहा --- " महाराज ! यदि आप सत्य सुनना चाहते हैं तो मैं सत्य वचन कहता हूँ , पर ध्यान रखें , सत्य को सह पाना अत्यंत कठिन है l "
महाराज भोज ने कहा --- " आप सत्य ही कहें l राजदरबार में हमें प्रसन्न करने के लिए गाये गए अतिशयोक्तिपूर्ण गान से हमें वितृष्णा सी हो गई है l आप सत्य कहें , हमें स्वीकार है l "
गोविन्द ने कहा --- " राजन ! लोकोक्ति है कि प्रात: किसी कृपण का मुख देखकर नेत्र बंद कर लेना चाहिए l इसी कारण मैंने अपनी आँखें मूँद ली हैं l '
अपनी गलती सुनना भी अत्यंत साहस का काम है l राजा के माथे पर पसीने की बूंदे दीखने लगी l किसी तरह राजा भोज ने अपने को संयत किया और कहा --- ' हे तपस्वी ! हमने कइयों को दान किया l क्या हम कृपण हैं ? "
गोविन्द ने कहा --- " महाराज ! आपने जो दान दिया , वह अपने अहंकार की तुष्टि के लिए दिया है l जबकि दान किसी सत्पात्र को उदारता के साथ प्रदान किया जाता है l आपने दान उसे दिया है जिसे उसकी आवश्यकता ही नहीं थी l केवल चाटुकारों को आपने दान दिया है l आप राजा हैं , राजा प्रजा का भगवान होता है l जो राजा अपने इस धर्म का पालन नहीं करता उसकी दुर्गति सुनिश्चित है l जो राजकोष का उपयोग केवल अपने सुख - भोग , वासना - तृष्णा की पूर्ति के लिए करता है , एक दिन उसका पतन सुनिश्चित है , फिर चाहे वह कितना ही धनबल , जनबल एवं बाहुबल से संपन्न क्यों न हो l अत: ऐसे राजा का मुख नहीं देखना चाहिए और इसलिए हमने अपनी आँखें मूँद ली हैं l "
राजा भोज का हृदय सत्य के बाणों से बिंधता जा रहा था l गोविन्द आगे बोले ---- " महाराज ! प्रगल्भ की विद्दा , कृपण का धन और कायर का बाहुबल ---- ये तीनों पृथ्वी पर व्यर्थ हैं l पृथ्वी पर सद्गुण देह छूटने के बाद भी अमर रहता है l धन तो चंचल है , इसका विनिमय तो होना ही है , परन्तु उसका सदुपयोग सर्वोच्च है l उदारता हृदय का गुण है l यदि उदारता है तो दधीचि , शिवि और कर्ण के समान दानवीर हुआ जा सकता है , जिनकी अमर गाथा अभी भी इस धरा पर गायी जाती हैं l "
गोविन्द की दी गई शिक्षा ने राजा भोज का हृदय परिवर्तित कर दिया , इसके उपरांत उन्होंने अपने धन का अधिकतम उपयोग प्रजा के कल्याण के लिए किया l उस दिन का सूर्योदय उनके जीवन में भाग्योदय के रूप में परिवर्तित हो गया l
गोविन्द ने कहा --- " महाराज ! यदि आप सत्य सुनना चाहते हैं तो मैं सत्य वचन कहता हूँ , पर ध्यान रखें , सत्य को सह पाना अत्यंत कठिन है l "
महाराज भोज ने कहा --- " आप सत्य ही कहें l राजदरबार में हमें प्रसन्न करने के लिए गाये गए अतिशयोक्तिपूर्ण गान से हमें वितृष्णा सी हो गई है l आप सत्य कहें , हमें स्वीकार है l "
गोविन्द ने कहा --- " राजन ! लोकोक्ति है कि प्रात: किसी कृपण का मुख देखकर नेत्र बंद कर लेना चाहिए l इसी कारण मैंने अपनी आँखें मूँद ली हैं l '
अपनी गलती सुनना भी अत्यंत साहस का काम है l राजा के माथे पर पसीने की बूंदे दीखने लगी l किसी तरह राजा भोज ने अपने को संयत किया और कहा --- ' हे तपस्वी ! हमने कइयों को दान किया l क्या हम कृपण हैं ? "
गोविन्द ने कहा --- " महाराज ! आपने जो दान दिया , वह अपने अहंकार की तुष्टि के लिए दिया है l जबकि दान किसी सत्पात्र को उदारता के साथ प्रदान किया जाता है l आपने दान उसे दिया है जिसे उसकी आवश्यकता ही नहीं थी l केवल चाटुकारों को आपने दान दिया है l आप राजा हैं , राजा प्रजा का भगवान होता है l जो राजा अपने इस धर्म का पालन नहीं करता उसकी दुर्गति सुनिश्चित है l जो राजकोष का उपयोग केवल अपने सुख - भोग , वासना - तृष्णा की पूर्ति के लिए करता है , एक दिन उसका पतन सुनिश्चित है , फिर चाहे वह कितना ही धनबल , जनबल एवं बाहुबल से संपन्न क्यों न हो l अत: ऐसे राजा का मुख नहीं देखना चाहिए और इसलिए हमने अपनी आँखें मूँद ली हैं l "
राजा भोज का हृदय सत्य के बाणों से बिंधता जा रहा था l गोविन्द आगे बोले ---- " महाराज ! प्रगल्भ की विद्दा , कृपण का धन और कायर का बाहुबल ---- ये तीनों पृथ्वी पर व्यर्थ हैं l पृथ्वी पर सद्गुण देह छूटने के बाद भी अमर रहता है l धन तो चंचल है , इसका विनिमय तो होना ही है , परन्तु उसका सदुपयोग सर्वोच्च है l उदारता हृदय का गुण है l यदि उदारता है तो दधीचि , शिवि और कर्ण के समान दानवीर हुआ जा सकता है , जिनकी अमर गाथा अभी भी इस धरा पर गायी जाती हैं l "
गोविन्द की दी गई शिक्षा ने राजा भोज का हृदय परिवर्तित कर दिया , इसके उपरांत उन्होंने अपने धन का अधिकतम उपयोग प्रजा के कल्याण के लिए किया l उस दिन का सूर्योदय उनके जीवन में भाग्योदय के रूप में परिवर्तित हो गया l
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