धूर्त व्यक्ति हमेशा अपना लाभ देखता है l वह कमजोर का नित नए तरीके से शोषण करता है l यदि वह कमजोर के साथ कोई समझौता करता है या कोई रहम करता है , तो इस दरियादिली की आड़ में वह अपना बहुत बड़ा स्वार्थ पूरा करता है , इसलिए नीति कहती है --- धूर्त के साथ सहयोग कभी हितकारी नहीं होता l इसी बात को स्पष्ट करती हुई एक प्रेरक कथा है -----
एक शेर ने कुछ सियारों के सहयोग से बारहसिंगा मारा l मांस के बँटवारे का निपटारा सिंह को ही करना था l उसने शिकार के टुकड़े किये और कहा ---- " एक टुकड़ा राजवंश का ' कर ' है , l दूसरा टुकड़ा अधिक पुरुषार्थ करने से मेरा l और तीसरा स्वयंवर जैसा है , उसे पाने के लिए प्रतिद्वंदिता में जो आना चाहे , वो संघर्ष के लिए तैयार हो l सियार बेचारे चुपचाप खिसक गए l सिंह ने पूरा बारहसिंगा खा डाला l
शिक्षा यही है कि धूर्त के साथ सहयोग कभी हितकारी नहीं होता l जहाँ तक हो उससे बचना चाहिए l
एक शेर ने कुछ सियारों के सहयोग से बारहसिंगा मारा l मांस के बँटवारे का निपटारा सिंह को ही करना था l उसने शिकार के टुकड़े किये और कहा ---- " एक टुकड़ा राजवंश का ' कर ' है , l दूसरा टुकड़ा अधिक पुरुषार्थ करने से मेरा l और तीसरा स्वयंवर जैसा है , उसे पाने के लिए प्रतिद्वंदिता में जो आना चाहे , वो संघर्ष के लिए तैयार हो l सियार बेचारे चुपचाप खिसक गए l सिंह ने पूरा बारहसिंगा खा डाला l
शिक्षा यही है कि धूर्त के साथ सहयोग कभी हितकारी नहीं होता l जहाँ तक हो उससे बचना चाहिए l
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