शोषण में मानवीय मूल्यों का कोई स्थान नहीं है l शोषण के साथ क्रूरता का भाव है l इसके लिए इनसान तो बस , एक उपभोग की वस्तु है l शोषण की मानसिकता यह है कि दूसरे की कमजोरियों का लाभ लेकर उसे सदा नियंत्रण में रखो और अपना हित साधने के लिए उसका उपयोग करो l जब तक वह उपयोगी है , तब तक उसका उपयोग किया जाये और अनुपयोगी होने पर उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया जाये l इसलिए शोषण एक प्रकार की विकृति है l यह विनाश का प्रतीक है l
अब शोषण भी छोटे क्षेत्र में सीमित नहीं रहा इसका स्वरुप भी ग्लोबल हो गया है l
अब शोषण भी छोटे क्षेत्र में सीमित नहीं रहा इसका स्वरुप भी ग्लोबल हो गया है l
No comments:
Post a Comment