कलियुग के अनेक लक्षण हैं , उनमें से एक यह भी है कि इस समय में दुर्बुद्धि का प्रकोप बढ़ जाने से मनुष्य भगवान को पूजता नहीं है , भगवान के नाम पर लड़ता है , विवाद और दंगा करता है l अधिकांश इसी को अपनी रोजी -रोटी कमाने का साधन बना लेते हैं l यदि धर्म और जाति के नाम पर होने वाले झगड़े क्या वास्तव में इसी आधार पर हैं ? तो घरेलू हिंसा , परिवार में धन , संपत्ति के विवाद , परिवार में ही वर्चस्व के लिए लड़ाई , सदस्यों का शोषण , उत्पीड़न , कार्य स्थल पर उत्पीड़न --- यह तो समान धर्म के लोग ही आपस में एक दूसरे को सताते हैं l इसलिए इस लड़ाई में ईश्वर को बीच में लाकर प्रकृति को नाराज नहीं करना चाहिए l पुराणों में अनेक कथाएं हैं जिनमें बताया गया है कि ईश्वर का निवास हम सब के ह्रदय में है , गीता में भी यही कहा गया है l लड़ाई -झगडे में अपनी इतनी ऊर्जा और जीवन का बहुमूल्य समय गंवाना मूर्खता है l ---- पुराण में एक कथा है -- दो महा पराक्रमी और अजेय राक्षस थे --- हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु l देवासुर संग्राम में हिरण्याक्ष की मृत्यु हो गई तो भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए हिरण्यकशिपु गदा लेकर भगवान से लड़ने के लिए निकल पड़ा l जैसे ही युद्ध आरम्भ हुआ भगवान अंतर्धान हो गए l उनको ढूंढते हुए उसकी भेंट नारद जी से हुई l नारद जी ने उससे पूछा कि युद्ध में किसकी विजय हुई ? हिरण्यकशिपु बोला --- ' लड़ते -लड़ते वह न जाने कहाँ छुप गया , मैं उसे देख नहीं सका l " नारद जी ने जाकर भगवान से पूछा --- " आप कहाँ छिप गए , जिससे हिरण्यकशिपु आपको देख नहीं सका l l " भगवान ने कहा --- " मैं सब भूतों में अपने रहने के स्थान उसकी ह्रदय गुहा में जा बैठा था , जहाँ बैठकर अपनी माया द्वारा प्राणियों को उनके कर्मानुसार संसार चक्र में घुमाता हूँ l "
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