' क्रोध एक ऐसा विकार है ,जो अकल्पनीय क्षति पहुंचा सकता है l '------- श्रेणिक नामक एक राजा था l चेलना नाम की उसकी रानी थी l एक बार दोनों महावीर तीर्थंकर के दर्शन कर लौट रहे थे तो रानी ने देखा कि एक दिगंबर मुनि भयंकर शीत में तप कर रहे हैं l यात्रा में रानी बेहद थक गईं थी इसलिए महल में लौटने पर उन्हें गहरी नींद आ गई l उनका एक हाथ शीत के कारण बिस्तर से नीचे लटककर अकड़ गया l आँखें खुली तो बहुत दरद था l जब सेंक दिया जा रहा था तो रानी के मन में सहज ही उस मुनि की स्मृति हो आई , जो निर्वस्त्र बैठा भयावह शीत झेलता तप कर रहा था , वे बोल उठीं --- " हे भगवान ! उस बेचारे का क्या हाल होगा , जब मेरा यह हाल हो गया है ! " राजा ने शब्द सुने , संदेह जन्मा कि रानी के मन में अवश्य ही कोई परपुरुष है l वे बाहर निकले और क्रोध से पागल होकर मंत्री से बोले ---- " रानी अंदर सो रही है , तुम अंत:पुर जला दो l " इसके बाद मन शांत करने राजा भगवान महावीर के पास पहुंचे l पहुँचते ही भगवान महावीर बोले ---- " चेलना पवित्र है , पतिव्रता है l यह तुमने क्या किया ! " तुरंत राजा श्रेणिक वापस लौटे l पूछा --- " महल जला दिया क्या ? " मंत्री ने कहा ---- " हाँ , आपकी आज्ञा थी l " राजा एकदम शोक में डूब गए l मंत्री ने कहा --- " राजन ! दुःखी न हों l मैं जानता था , आपने निर्णय आवेश में लिया l महल व रानी सुरक्षित हैं l मैंने प्रतीक रूप मर हस्ति शाला जला दी l " राजा प्रसन्न भाव से रानी के पास पहुंचे l फिर राजा ने संकल्प लिया कि कभी कोई निर्णय होश खोकर , क्रोध में नहीं लेंगे l
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