पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " हमारे जीवन में जो कुछ भी है ---- भौतिक संपदा , आध्यात्मिक संपदा , रिश्ते - नाते , हमारा अपना भौगोलिक परिवेश , ये सब हमारे ही कर्मों की अभिव्यक्ति है l दुनिया में हम जिसे भी देखते हैं अर्थात संतान , गुरु -शिष्य , संबंधी जो कोई भी हैं , वे सब हमारे ही कर्मों का परिणाम हैं l इस विश्व ब्रह्माण्ड में हम जहाँ कहीं भी हों हमारे कर्म हमारा पीछा करते हुए हम तक पहुँच ही जाते हैं और तब तक समाप्त नहीं होते , जब तक हम उन्हें भोग नहीं लेते l कर्मफल का विधान सबके लिए एक समान है l " कर्म करना मनुष्य के वश में है लेकिन उसका फल कब मिलेगा यह काल निश्चित करता है l ------ भीष्म पितामह शरशैया पर लेते हुए थे l भगवान कृष्ण युधिष्ठिर को लेकर पितामह भीष्म के पास गए और बोले ---- " युद्ध के कारण धर्मराज युधिष्ठिर बहुत शोकग्रस्त हैं , आप इन्हे धर्म का उपदेश देकर इनके शोक का निवारण करें l " तब भीष्म पितामह ने कहा ---- " आप कहते हैं तो मैं उपदेश दूंगा , किन्तु हे केशव ! पहले मेरी शंका का समाधान करो l मैं जानता हूँ कि शुभ - अशुभ कर्मों का फल अवश्य मिलता है l इस जन्म में तो मैंने कोई ऐसा कर्म नहीं किया और पिछले 72 जन्मों में भी ऐसा कोई क्रूर कर्म नहीं किया , जिसके फलस्वरूप मुझे बाणों की शैया पर शयन करना पड़े l " उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ---- " यदि आप एक और जन्म देख लेते तो आपकी जिज्ञासा शांत हो जाती l पिछले 73 वे जन्म में आपने पत्ते पर बैठे हरे रंग के टिड्डे को पकड़ कर उसको बबूल के कांटे चुभोये थे , आज आपको वही कांटे बाण के रूप में मिले हैं l
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