एक बार माता सीता ने हनुमान जी से प्रसन्न होकर उन्हें हीरों का एक हार दिया l कुछ समय पश्चात् सीताजी ने देखा कि हनुमान जी ने प्रत्येक हीरे को माला से अलग कर दिया और उन्हें चबा - चबाकर जमीन पर फेंकते जा रहे हैं l यह देख माता सीता को बहुत क्रोध आ गया उन्होंने कहा ---- ' इतना बेशकीमती हार तुमने नोच - खसोटकर नष्ट कर दिया l यह सुन हनुमान जी बोले --- " माते ! मैं तो केवल इन रत्नों को खोलकर यह देखना चाहता था कि इनमे मेरे आराध्य प्रभु राम और माँ सीता बसते हैं अथवा नहीं l आप दोनों के बिना इन पत्थरों का मेरे लिए क्या मोल है l " हनुमानजी के भक्तिपूर्ण वचनों को सुनकर सीताजी का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने अपना वरदहस्त उनके मस्तक पर रख दिया l
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