लघु कथा ------ एक मिटटी के ढेले से सुगंध आ रही थी तथा दूसरे से दुर्गन्ध l दोनों जब मिले तो आपस में विचार करने लगे कि हम दोनों एक ही मिटटी के बने हैं , फिर इतना अंतर क्यों ? सुगंधित ढेले ने कहा ---- " यह संगति का प्रतिफल है l मुझे गुलाब के नीचे पड़े रहने का अवसर मिला और तुम गंदगी के नीचे दबे रहे l " वास्तव में सत्संग की महिमा अपरम्पार है l सत्संग पाने का कोई भी अवसर खोना नहीं चाहिए l
2 . शत्रुओं से घिरे एक नगर की प्रजा अपना माल , असबाब पीठ पर लादे हुए जान बचाकर भाग रही थी l सभी घबराये और दुःखी स्थिति में थे , पर उन्ही में से एक खाली हाथ चलने वाला व्यक्ति सिर ऊँचा किए , अकड़कर चल रहा था l लोगों ने उससे पूछा --- " तेरे पास तो कुछ भी नहीं है , इतनी गरीबी के होते हुए फिर अकड़ किस बात की ? " दार्शनिक वायस ने कहा ------- " मेरे पास जन्म भर की संगृहीत पूंजी है और उसके आधार पर अगले ही दिनों फिर अच्छा भविष्य सामने आ खड़ा होने का विश्वास है l यह पूंजी है , अच्छी परिस्थितियां फिर बना लेने की हिम्मत l इस पूंजी के रहते मुझे दुःखी होने और सिर नीचा करने की आवश्यकता ही क्या है ? "
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